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________________ "मूलाराधना आश्वासः मिच्चत्तं बंदतो जीवो विवरीयदसणो होदि । ण य धम्म रोचदि हु महुरं स्खु रसं जहा जरिदो ।। ४१ ।। मिथ्यात्वं वेदरानगी न तत्त्व कुरुते रुचिम् ।। कस्मै पित्तज्वरा य रोचते मधुरो रसः? ॥ ४४ ।। विजयोदया एवं मिथ्यात्वस्य कर्मत्वकल्पितस्य उदयः सशिहितसहकारिफारणस्य स्थकार्यजनने प्रतिबत्तिस्तेनोदयेन कारणेन निरुपितं वस्तुयाधात्म्यं न असे अतत्वं तु कथितं अकथितं पा खसे । वस्तुयाधात्म्याथशाने को दोषो येन कारणेन निरूपितं वस्तुयाथात्म्यं न इसे । अतत्वं तु कधितं मकथितं घा भरते। हिंदी अर्थ-मिथ्यात्व कर्मका अनुभव लेनेवाला यह जीव विपरीत श्रद्धावाला बन जाता है, उसको जैनधर्मका स्वरूप अच्छा मालूम नहीं होता है. जैसे ज्वरपीडित मनुष्यको मधुर भी खांडका रस कटु ज्ञात होता है. जब सहकारिकारणोंकी मदत मिथ्यात्व कमको मिलती है तब वह अपना कार्य करने में कटिबद्ध होता है. अ. र्थात् वस्तुका यथार्थ म्वरूप बतानेपर भी जीव इस कर्मके उदयसे उसपर श्रद्धान नहीं करता है. और अतच्चक ऊपर उसका स्वरूप कहो अथवा न कहो श्रद्धा हो जानी है. बस्तुके यथार्थ स्वरूप पर अश्रद्धा होनम अनवमें श्रद्धा हो जाती है यह दोष उत्पन्न होता है. वस्तुयाथात्म्याचजान को दोपो येन तम्प्रतिपक्षश्रद्धानभावनामा तदपास्यते इत्याशंकाच अश्रद्धानकन दोपमाद्वारम्यख्यापनार्थी गाथा सुविहियमिमं पवयणं असहहन्तेणिमेण जीवण ।। बालभरणाणि तीदे मदाणि काल अणताणि || ४२ ॥ अनेनाप्रधान जिनवागमनेकशः ।। बालबालमृतिःमाप्ताः कालेऽतीते ( यतोऽट्रिना) ॥ ४५ ।। विजयोवथा-सुपिडिमिति । सुष्ठ विहितं कृतं पूर्वापरविरोधशेषरहितवस्तुयाथारम्यवाहि विशानकारण । इम इदं । पचयर्ण प्रषचनं । असइहतेण अश्रावधानेन । इमेण अनेन । जीवेण जीवन पथमच पदसंबंधः । चालमरणाणि
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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