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________________ मूलाराधना आश्वासः मोहोदयाकुलस्तत्वं तथ्यमुक्तं न रोचते ॥ जंतुरुक्तमनुक्तं वा विपरीतं तु रोचते ॥ ४३ ॥ चिजयोदया-मोहोदयेणेनि | मोहोदयेय ण सहदि सो मिच्छादिङ्गीति । मोहयति मुहातेऽनेनेति वा मोदी दर्शनमोहनीयाच्यं कर्म मरोन जुन्यबीर्थम । यथा मद्यमान्यमान अपाटवं प्रशाया वैपरीत्यं च संपादरासि । मियादृष्टः कि लक्षणमित्याह मूलारा:-मोहोदयेण-मद्यमिय प्रज्ञा मोयति, अपाटवं वैपरीत्यं या यो नवति, मोझते येन वा स मोहो मिथ्यात्यकर्म सस्योदयः सहकारिसानिध्यायप्रतिबद्धा म्वकार्ये प्रमान्तिः : एमग तम्गाभायं : भन्नकार्य असत्त्वं । अत्र साभ्याहारत्वात्सूत्राणमित्य पवघटना । यो जीवो मोहोदयेन कारणेन सभ्यग्गुरूपविष्ट न अद्भुते सद्भावं पुनः उपविष्टमनुपदिष्टं या अधाति स मिघ्यारष्टिरेष्टव्यः । तथा च मूले सूक्तमन्यास्यायते मिच्छ वेदन्तो जीयो विवरीयसणो होदि ॥ ण य धम्म रोचेदि हु महुरं खु रसं जहर जरिदो । ‘मिच्छादिही मुणेयञ्चा' अर्थात् अल्पभी अश्रद्धा करनेवाला मिथ्यादृष्टि समझना चाहिये ऐसा आपने कहा है परंतु उसका स्वरूप हमको मालूम नहीं है ऐसी आशंका होनेपर आचार्य मिथ्याष्टिका स्वरूपनिरूपण करने के लिये गाथा कहते हैं हिंदी अर्थ-दर्शन मोहनीयकर्मका उदय होनेसे यह जीव कहे हुए जीवादि पदाथोंके सच्चे स्वरूपपर श्रदान फरता नहीं है. परंतु जिसका स्वरूप कहा है अथवा कहा नहीं ऐसे असल्य पदार्थों के ऊपर यह प्रदान करना है. जैसे मदिगका पान करनेसे मनुष्यके युद्धीमें मंदना आती है और वह पदार्थका स्वरूप उलटा जान लेता है वैसे ब, दर्शनमोहनीयकम भी मदिराके समान शनिको धारण करता है. यह कर्म आत्माको मोड युक्त करता है. समलिन असलर पदाधाको बह पत्य समझकर उसमें अदा करता है. भश्वा पदार्थका स्वरूप जानता नहीं है. १ खपुस्तके-मोहोदयेणेति--साध्याहारस्यात्मूत्राणां अध्याहारेणैवं पदघटना । जो जीवो इति ।
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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