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________________ ReRATE E R मुलाराधना आ १५८३ स्वजन और परजन इस विवेकका अभाव प्रकारांतरसे दिखाते है. ___अर्थ-इस जगत में जितने प्राणी है उनसे भूतकालमें मेरा बंधुत्वका संबंध था भविष्यकालमें भी इनसे | स्वजन संबंध रहेगा अर्थात् सर्वजन सर्वजनके पंधुथे और आगंभी अथीत भविष्य काल में भी रहेंग अर्थात स्वजनत्व संबंध सर्व जीवोके साथ सर्वजीवोका सामान्य रूपसे होनेपरभी यही मेरा स्वजन है और ये मेरेसे भिन्न है. ऐसा समझना भूलसे खाली नहीं है. इसलिये ये प्राणी मेरेसे भिन्न है और में इनसे भिन्न हूं ऐसा विचार करना अन्यत्यानुपेक्षा है. रति रति रुक्खे रुक्खे जह सउणयाण संगमणं ।। जादीए जादीए जणस्स तह संगमो होई ।। १७५७ ।। संगमोऽस्ति शकुंताना रात्री रात्री तरौ तरी ।। तथा तथा तनूभाजां जाती जाती भये भये ॥१८२६ ॥ विजयोदया-रति रसिं रात्री रायौ। रुपने रक्खे वृक्ष वृक्षे ।जह सउपायाण संगमणं यथा पक्षिा संगमनं । जावीप जादीप जन्मनि अम्मनि । जणस्स जनस्य । तहा तथा संगमो होवि संगमो भवति । यथा रात्रायाश्रयमंतरेण स्थातुमसमर्थाः पक्षिणो योग्यं वृक्षमन्विष्य ढीकते ॥ तद्वत्पापिनोपि निरवशेषगलिसायापदलस्कंधाः परित्यक्तमाकमश. रीराः शरीरांतरग्रहणार्थिनः शरीरब्रहणयोग्यवेश योनिसंहितमारकवति ॥ तत्र ययोः शुरुयोणितमयमाश्रितोऽशुचि तम तो पितराविति संकल्पयति । तथाभूतयारथ शुकशोणितयोरपासदेहा भ्रातर इति ॥ अन्ये नषभूताच स्वजनिनोतिसुलभाः। कांतारे पक्षियां निवासवृक्षा श्वेति भायः ॥ तदेव स्वजनाप्रतिनियतत्त्वं रष्टान्तेन स्पष्टयति ।। मूलारा-जादीप जन्मनि । अर्थ----प्रत्येक रात्री में प्रत्येक बक्षपर जैसे पक्षी आकर बैठते हैं. वैसे प्रत्येक जन्ममें प्राणिओंका संगम होता है, जैसे रात्री में आश्रयके पिना पक्षी ठहर नहीं सकते हैं इस लिय योग्य वृक्षको शोधकर उसका आश्रय लेते हैं. वैसे प्राणी भी संपूर्ण आयुष्य रूपी पुगलस्कंध नष्ट होने पर पूर्व शरीरका त्याग करते हैं. अन्य शरीरको धारण करने की इच्छा करते हुए शरीरग्रहणके योग्य प्रदेशकी जिसको योनि ऐसा नामान्तर है प्राप्त कर लेते हैं. यहां MATATAMAKERATASSISTANSAATSAEBARCOAST PART १५०
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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