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________________ मुलाराधना १५८२ उत्पन्न हुए कर्मरूपी पुशल स्कंधोंसे बद्ध होकर यह जीव अनेक गतिओम भ्रमण करता है.इम लिये इस संसारमें कोई भी जीच किसी का नियमसे स्वजन है नहीं. यदि स्वजनसंबंध होता तो यह स्वजन है और यह परजन है ऐसा मानना योग्य होता. यदि जो जिसका स्वजन है वह उसका हमेशा ही स्वजन मानना पडेगा. जो परजन है वह कभी भी स्वजन नहीं होगा अतः यह नियमन नहीं है.सब जीव कमसे परतंत्र हो रहे हैं.अतःमेरा कोई स्वजन और परजन नहीं है.सर्व जीवसमुदाय मिथ्यात्वादि भिन्नभिन्न परिणामोंसे एक दूसरेसे मित्र ही है ऐसा विचार कर हे क्षएक तू किसी में प्रेम किसी में निर्दयता द्वेष ऐसी असमानता नहीं धारण करनी चाहिये. जब रागद्वेषरहित तू हो जायेगा तब निर्विकल्प चारित्रका धारक मनेगा. मोहसे यह मेरा भाई है, यह मेरा पिता है, पुत्र है मानजा है एसी कल्पना करके अन्धजनोपर आसक्ति करता है. मैं इनसे मिशहूँ और ये मेरेसे मिल हैं. ऐसा भेदशान नहीं होनेसे अन्य जनोंमें आसक्ति उप्त होती है, कारगर साकिसmes सव्वो वि जणो सयणो सव्वस्स वि आसि तीदकालम्मि । पंते य तहाकाले होधिदि सजशो जणास जणो ॥ १७४६ ॥ काले तीते ऽभवत्सर्वः सर्वस्यापि मिजो जमः॥ सथा कर्मानुभावेन भविष्यति भविष्यति ।। १८२५ ।। विजयोदया- सम्यो चि जणो सजणो निरयशेषो अंतुरनंतः स्वजनः । सञ्चस्स वि सर्वस्थापि प्राणभृतः। नीद कालंमि अतीत काले आसि आसीन् । पते य तथा काल भविष्यति तथा काले। होहिनि मरिष्यति । सजणो जगस्स जणो स्वजनो जनस्य जनः । एतदननाध्यायत ।। अतीत भविष्यति च काले सर्वस्य सर्वः स्वजन असीविष्यति चानतस्सर्वसाधारणात्ये स्वजनत्वस्य सति ममायं स्वजन इति मिथ्यासकल्पः । तेऽप्यम्ये ममाप्यन्यस्सस्य इत्येतदेष तत्वमित्य: म्यत्वस्य स्वपरविषयस्यानुप्रक्षणमन्यत्यानुप्रक्षा। सर्वः सर्वस्य स्वजन आसीत्कर्मवशाहविष्यति भवति चेति सर्वसाधारणे स्वजनत्वे सति ममैवायं स्वजन इत्येप संकल्पो मम स्यात् , ते मदन्ये तेभ्ययाहमन्य इति स्वपरविषयान्यत्वभावनार्थमाह मूलारा-जणो जन्तुः । सध्वम्स प्राणिन: ' तीद अतीताः । पते भविष्यति ।
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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