SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलाराधना १३७ मोक्ष - जिससे कर्म दूर किया जाता है वह मोक्ष अर्थात् क्षायिकज्ञान, धार्थिकदर्शन, यथाख्यात चारित्ररूप जिनपरिणामोंसे आत्माके संपूर्ण कर्म आत्मासे दूर किये जाते हैं उनको मोक्ष - भावमोक्ष कहो अथवा संपूर्ण कमका आत्मासे अलग हो जाना वह भी मोक्ष अर्थात् द्रव्यमोक्ष है. बंध - जिस मिध्यादर्शनादि परिणामो काम द्रव्य किया जाता है अर्थात् तक उसकी स्थिति पूर्ण नहीं होती तबतक आत्मामें उसको परतंत्र होकर रहना पडता है ऐसे कर्मको परतंत्र करनेवाले मिभ्यादर्शनादि आत्मपरिणामोंका संघ- भावबंध कहते हैं, अथवा स्थिनिबंधयुक्त कर्मकेद्वारा आत्मा परतंत्र किया जाता है इस लिये कर्मको भी कहते हैं, वह कर्म द्रव्यरूप समझना चाहिये. पुण्य - इष्ट पदार्थोकी प्राप्ति जिससे होती है ऐसे कर्मको पुण्य कहते हैं. पाप - अनिष्ट पदाधांकी प्राप्ति जिससे होती हैं ऐसे कर्मको पाप कहते हैं. यहां बंध शब्दसे जीवके परिणामोंकाही ग्रहण किया हैं. कर्मका ग्रहण किया नहीं है. पाप और पुण्यका अलग ग्रहण किया है अतः उससे कर्मका ग्रहण किया है ऐसा समझना चाहिये. शंका-- आपने परिणामोंका वर्णन किया है इससे आसव, बंध, संचर, पुद्गलोंमें अंतर्भाव होता है. जीव और पुङ्गलका पूर्व गाथामें आपने वर्णन किया है. करनेवाली यह सूत्रगाथा व्यर्थसी मालूम पड़ती है, उत्तर - आपकी शंका ठीक है, शिष्योंके अभिप्राय भिन्न भिन्न हुवा करते हैं अर्थात् कोई संक्षेपरुचि रहते हैं, किसीको विस्तार प्रिय रहता है और कोई शिष्य मध्यप्रकार प्रिय होते हैं. अतः वे समझ सके ऐसे मार्गोका - तत्व कथनकी प्रणालीका आगममें कथन है. इस लिये आचार्यने दो तीन प्रकारोंसे जीवादि पदार्थोंका स्वरूप कहा है. यह योग्यही हुवा है. इसलिये भव्याने तत्व विवेचनके सर्व प्रकारभि श्रद्धा करनी चाहिये. थोडीसी भी अश्रद्धा नहीं करना चाहिये. 4 निर्जरा व मोक्ष इनका जीव अतः आस्रवादिकों का वर्णन freefear किमल्पस्य अश्रद्धानेन भवति ? बहुतरं श्रद्धीयते इत्याशंका न कार्येत्येतदाचष्टेपदमक्खरंच एकं पि जो ण रोचेदि सुत्ताद्दिहं ॥ सेसं रोचतां बिहु निच्छादिट्टी मुणेयव्यो ॥ ३॥ आधारः १३७
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy