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________________ फुलाराधना आश्वास यथोक्तलक्षणो ध्याता च्यातुमुत्सहते यदा ।। तदेदं परिकर्मावी कृत्वा ध्यायतु धीरधीः ।। शून्यागारे गुहायां च दिवा वा यदि वा निशि || स्त्रीपशुक्लीवजीवाना क्षुद्राणामप्यगोचरे॥ अन्यत्र या कचिदेशे प्रशस्ते प्रासुके समे ॥ चेतनाचेतनाशेषध्यानविनविवर्जिते ॥ भूतले वा शिलापट्टे सुशील स्थितोऽपया। सममृज्वाय गात्रं निष्कंपावयव दधत् ।। नासाप्रन्यस्तनिःस्पैदलोचनो मंदमुहसन ॥ द्वात्रिंशष्ठोषनिर्मुक्तकायोत्सर्गव्यवस्थितः ।। प्रत्याङ्कत्याक्षलुटाकारतवर्थेभ्यः प्रयत्नतः ॥ चिंतां चाकृष्य सर्वेभ्यो निरुभ्य ध्येयवस्तुनि ।। निरस्तनिद्रो निर्मितिनिरालस्यो निरतरः ।। स्वरूपं पररूपं या ध्यायेदंसम्शुिरये ॥ किंच-देहावस्था पुनयेव न स्यादपानोपरोधिनी ।। सदबस्यो मुनिायेत्स्थित्वासित्त्वाधिशम्य वा ।। देशाविनियमोऽप्ये प्रायो वृत्तिन्युषाश्रयः ।। कृतात्मनो तु सर्वोपि देशादिनिसिद्धये ॥ अर्थ-विषयोंसे इंद्रियां और मनको हटाना चाहिये. अर्थात् इंद्रियोंका उपयोग और मनका उपयोग बाह्य पदार्थमें रागद्वेषस प्रवृत्त होता है. उनको रागोषरहित होकर वहांसे हटाना चाहिये. और बीयांतरायकर्मके क्षयोपशयसामर्थ्य से मनोयोगको अपने आत्मामें स्थिर करना चाहिये.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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