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________________ CON मूलाराधना १५३२ अगेके भवमें मेरेको अच्छे २ पदार्थ मास होने चाहिये ऐसा विचार करना यह निदान नामक आतध्यान है. चोरी करने का वार २विचार करना, चोरसे धन न लूटा जावे इस लिये उसका संरक्षण करनेके लिये शस्त्रादिक ग्रहणकर उनका रक्षण करनेके रुद्रपरिणाम वारंवार होना, छह प्रकारके आरंभ करना अर्थात् पकायजीवोंकी जिसमें हिंसा होती है ऐसा आरंभ करने में तल्लीन होना इसको रौद्रध्यान कहते हैं. हिंसा करनेवाले मनुष्यको रुद्र कहते हैं ऐसे मनुष्यमें उत्पन्न हुआ जो ध्यान उसको सैद्रध्यान कहते हैं ऐसा रौद्र ध्यानका लक्षण संक्षेपमे कहा है. ये आर्त और शैद्रध्यान दोनो भी त्यागने चाहिये. क्योंकि ये महाभयक कारण हैं और सुगतिके प्रतिबंधक है अर्थात् दुर्गति के कारण हैं. ये धर्मध्यान और शुक्लध्यानके बाधक हैं ऐसा समझकर धर्म और मुकार, ध्यान में क्षपक सदा स्थिर रहता है. ... यान प्रबुती कारणमाएइंदियकसायजोगणिरोध इच्छचणिज्जरं विउलं || चित्तस्स य घसियर मग्गा अविप्पणासं च ॥ १७०५ । ध्याने प्रवर्तते कांक्षन्कषायाक्षनिरोधनम् ।। वश्यत्वं मनसो मार्गावभ्रंशं निर्जरां पराम् ॥ १७७२ ॥ विजयोदयादियकसायजोगणिरोध स्पर्शादिधूपजात उपयोग इंद्रियशडेदनोच्यते । कामयाः क्रोधादयस्तै योगः संवैधस्तस्य निरोधं निवारणामिच्छशियं च विपुलामिच्छन्, बस्तुयाथात्म्यसमाहितचिसस्य नेद्रियषिपय जन्योपयोगसमवः, कषाणां योत्पत्तिः, चित्तस्स य घसियत्तं चित्तस्य स्ववशत्य पच्छन् स्वेष्टविषये चिसमसकृत्स्था. पयनोऽनिपाच्च ध्यावतंयतः स्ववश भयति ॥ चित्तस्य मग्गादो अषिप्पणासंच मार्गाद्रल्मषयादविपाशं च वांछन् , अभियानप्रवृत्ती रत्नत्रयात्प्रच्युतो भवामीति ध्याने प्रयतते ॥ धर्मध्यानस्य' प्रयोजनमांतरं परिकर च नि ९ गाथाचतुष्टयमाचष्टे मूलारा--जोग संबंधः । इच्छं वांछन् । णिज्जरं शुभकमेकदेशसंशयं । पिटलं बाधाभ्यंतरतपोविकल्पांतरसाध्य निर्जरातोऽतिशायिनीं । वसियतं स्ववश्यतां । स्वेशेऽर्थे चित्तं स्थापयितुं अनिष्टाच्च ब्यावर्तयितुमित्यर्थः । मग्गादु अविप्पणास रत्नत्रयादप्रययनम् । १५३२
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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