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________________ SBIGEN बुलाराधना आश्वासः - - म - अमानुशंस्याहसोपकरणादानतत्कथाः ।। निसर्गहिंम्रता चेति लिंगान्यस्य स्मृतानि वै ॥ मृषानंदो मृषावाक्यैरतिसंधानातिनम् ॥ वापारयादिलिंग सदितीयं रौद्रमिष्यते ॥ स्तेयानंद: परद्रव्यहरणे स्मृतियोजनम् ॥ भवेत्संरक्षणानंवः स्मृतिर्थार्जनादिषु । प्रतीतलिंगमेवैतद्रौद्रभ्यानद्वयं भुवि ।। नारकं दुःसमस्याहुःफलं रौद्रस्य दुस्तरं ।। था तलिंगमस्याहुरभंग मुखबिक्रियाम् ।। प्रस्वेदमंगकंपं च नेत्रयोति ताम्रताम् ।। प्रयत्नेन विनवतद्रौद्रध्यानद्वयं भवेत् ।। अनादियासनोदूभृतमतम्तद्धिमजेग्मुनिः ।। अपि च-अनत्त्वमित्यतत्त्वाज्ञावपरीत्येन भावयन्।। प्रीत्यप्रीती समाधाय संक्लिष्ट्र भ्यानमच्छति ।। संकल्पो मानसी वृत्ति विपयेध्वनुतर्षिणी ।। सैब दुाप्रणिधान स्यादपध्यानमतो पितुः ।। स्वार्थघातकस्वादानं त्यक्त्वा नित्यं सयानकतानो भवेत्युपदेशमाह - मूलारा-- अवह अपहत्य । महाभये दुर्गतिदुःखहेतुबुरितधानिंदानत्वात् । सुगदीए सदेवत्वसुमानुपपंचमागतिरूपायाः सुगतेः । पच्चूहे विनभूते तत्कारणपुण्यवंधनश्मयप्रतिबंधित्वात् । समण्णागवमदीओ सभ्यगनुगतबुद्धिः । अर्थ-अमनोज्ञसंप्रयोग-अनिष्टपदाथोंका संयोग होनेपर उसका वियोग किस उपायसे होगा ऐसा बार २ विचार करना अमनोज्ञ संप्रयोग नामक आतध्यान है, इष्टवियोगज-स्त्रीपुत्रादिक पदार्थोंका वियोग होनेपर उनकी माबि की बार बार चिंता करना, परीषह प्राप्त होनेपर ये कैसे दूर होंगे ऐसा मनमें बार २ विचार करना, DANARAMAIRALAPANA १५३१
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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