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________________ इलाराधना भावास मुळारा---विधि विकल्पं । णिस्संगदाए निःसंगत्वभावनया। सशिव कृशीकुक । असंकिलेसेण आसरौद्रभावना च सम्मोहं शरीर ममत्वं । उतं च-- सहमानो मुने! सम्यगुपसर्गपरीवहान् ॥ संक्लेशति- हे क्षपक सर्व प्रकासगस्त्य मसंक्लिष्टो देहमान अर्थ-हे क्षपक सर्व प्रकारके उपसर्ग और सर्व प्रकारके परीषह सहकर निःसंगत्वकी भावनासे और सक्लेशहित परिणामांसे तू मोह को क्षीण कर. वि कारणं तणादीसंथारो ण वि य संघसमवाओ ॥ साधुस्स सकिलेसो तस्स य मरणावसाणम्मि || १६७२ । राणानिसमारोशेवश्चतुर्दा संघमीलनम् ॥ निःफलं जायते साघो ! मृत्यौ संश्लिष्टचेतसः ।। १७३८ ।। विजयोदया- वि कारणं तणादी नैव कारण तृप्यादिनस्तरः सलेखनाया, नापि संघसमुदायः मरणावसाने संश्लिषयतः साधोः॥ मरणांते संक्लेश माविशतः संस्तसदिविधिधययमाह-- मूलारा-कारणं समाधिनिमित्नं । मरणावसामम्मि मृत्योनिकटे सति ।। अर्थ-यदि मरपाके समयमै संक्लेश परिणाम उत्पन्न होंगे. तो तृणादिकोंका संस्तर, और संघसमुदाय भी सल्लेखनाके मति कारण रूप नहीं होंगे, क्योंकि ये बाय कारण हैं, असंक्लेश रूप परिणाम ही सल्लेखनाकेलिए उपादान कारण माने गये हैं. इसलिए परिणामों में संक्लेश न उत्पन्न होगा ऐसा क्षपकने प्रयत्न करना चाहिए अर्थात् शरीरममताका त्याग करना चाहिए. जह वाणियमा सागरजलम्मि णावाहिं रयणपुष्णाहिं ।। पत्तणमासण्णा वि हु पमादमूढा वि बज्जति ॥ १६७३ ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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