SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1516
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "भूलाराधना है. इसके समान दूसरा दुःख है नहीं. इसलिये जन्ममरणरूपी म्याधीको उत्पन्न करनेवाली 'शरीरममता तु अपने हृदयसे दूर कर. आश्वासः असणं इम सरीरं अण्णो जीवोति णिच्छिदमदीओ ॥ दुक्खभवकिलसयरी माह ममत्ति कुण'सरीर ॥ १६७०।। परोऽयं धिंग्रहःसाधो! चतनोऽयं यतःपरः ॥ ततस्त्वं विग्रहस्नेह महाक्लेशकरं त्यज ॥१७३६ ॥ विजयोक्या-श्रण म सरीरं अन्यक्ति शरीरं अन्यो तुरिति मिश्रितमतिर्नुन संकलशसंपादनोघांमा कृथाः शरीरे ममताम् ॥ महादुःखोपायकायममत्वत्याजनाय देहात्मभेदभावनां भावयति भूलारा--दुकाबपरिकिलेसरि चित्ताप्रमादलक्षणन चित्तविशेषरूपेण वा दुःखेन क्रियमाणः परिक्लेश: शारीगे मानस मतापः । उत्करण कारणे । अर्थ-डे क्षपका यह शरीर भिन्न है और जीव इससे भिन्न है ऐसा निश्चयस समनकर दुःख और संक्श राहत परिणामोंकी जननी देहममता तू छोड दे. सव्वं अधियासंतो उवसम्यविधि परीसहविधि च ॥ णिरसंगदाए सल्लिह असंकिलेसेण तं मोहं ॥ १६७१ ।। सहमानो मुने! सम्यगुपसर्गपरीषहान् ॥ निःसंगरस्वमसालेष्टो देहमोहंतनूकूरु ॥ १७३७ ॥ विजयोदया-सव्य उपसम्गधिहि सर्व उपसर्गविकल्प परीपविकल्पं च सहमानो मोई मांस्तनूकुरु ।। णिस्संगतया असंक्लेशेन च । रामादिसंगत्यागभावनया आर्तरौद्रपरित्यागभावनया चोपसर्गाचभिभर्व परिहरन शरीरममत्वं त्रासयेति शिक्षार्थमाह-- १५०१
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy