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________________ महाराधना आश्वासा भीलोकमानमसलेषणारिरिः । तप्यमानो गतो दुःख पावकैरिव स्तिय ॥ अर्थ-दीनपना, क्रोध, चिता, शोक, असहनशीलता, एतद्रप अग्निओस पीडित होकर हे क्षपका तुझको घोर दुःखोंका अनुभव मिल चुका है. ११५१ दंडणमुंडणताडणधरिसणपरिमोसमेकिलेसा य॥ घणहरणदारधरिसणधरदाहजलादिधणनासं ॥ १५९२।। स्तेनाग्निजलदायादपार्थिवैर्धनविप्लवे ।। कशादंडादिभिर्घाते हस्तपादादिमईने ।। १६५५ ।। विजयोदया-डण मुंडपाउन मुडमतारणदूषणपरिमोषणसंक्लेशाः परधनापहरणदारदुषणानि गृहदारजलादिभिर्वविणनाशात् ।। उभयदुःखानुस्मरणाय गाथाषट्कमाह-- मूलारा-दंपण अपरावे सनि राजादिभिर्धनापहरणं । परिसणा सानपदूषणारोपण । परिमोसे परद्रव्यहरण दारधरिसणं भार्याविधर्षणं जलादियणणासो जलागम्यादिभिर्धनविनाशः ।। अर्थ- मनुष्य गतिमें अपराध होनेपर राजादिकसे धनापहार होता है. यह दंडनदुःख है. कुछ अपराध होनेपर मस्तकके सब केश निकलवाना यह मुंडण दुःख है. तादण दुःख-अपराध होनेपर फटके लगाना. घर्षण दाख आक्षेपसहित दोषारोपण करनेसे मनमें दुःख उत्पन्न होता है. अपराध होनसे राजा धन लुटवाता है तब जो दुःख होता है उसको परिमोष दुःख कहते हैं. चोर द्रव्य हरण करते हैं तब जो दुःख उत्पन्न होता है उसको धन हरण दुःख कहते हैं. भार्याको कोई पुष्ट जबरदस्तीसे हरण करनेपर उत्पन्न हुए दुःखको दारहरण दुःख कहते है. घर जलनेस, धन नष्ट होनेसे इत्यादिक कारणोंसे मानसिक दुःख उत्पन्न होते है. दंडकसालठिसदाणि डंगुराकंटमद्दणं धोरं । कुंभीपाको मच्छयपलीवणं भत्तवुच्छेदो !! १५९३ ॥ ५५५
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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