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मूलागचना
आश्वासः
अर्थ---कन्छु, ज्वर, खासी, श्वास, भस्मक व्याधि, आंखके रोग, इत्यादिक रोगांसे होनेवाली पीडा सनत्कुमार मुर्नाने जो कि गृहस्थावस्थामै चक्रवर्ती थे सो वर्ष तक संश परिणामके बिना धारण की परंतु रत्नत्रयका त्याग नहीं किया.
णाबाए णिव्वुडाए गंगामज्झे अमुज्झमाणमदी॥ आराधणं पवण्णो कालगओ एणियापुत्तो ॥ १५४३॥ गंगायां नावि मनायां एणिकातनयो यतिः॥
अमुहमानसः स्वार्थ साधयामास शाश्वतम् ॥ १६.४ ॥ विळयोदया-जापाए णिचुडाए नाषि निमनायांच। गंगामज्झे गंगाया मध्ये अमुज्जमाणमदी अमुबमानमतिः। आराधणं पक्षणो आराधनां प्रतिपनः । कालगयो सन 1 कालं गतः। एणियापुत्सो एणिकपुत्रनामधेयो यतिः॥
मूलारा--कालगवं भरण प्राप्तः । एणियापुतो एणिकापुत्राख्यो मुनिः ५
अर्थ-एणिकापुत्र नामके यतिराज नाबमें आरोहण कर गंगाके दूसरे किनारे पर जारहे थे तब वह नाव गंगामें डूब मई परंतु मुनिराजकी बुद्धि में जरासाभी मोह उत्पत्र नहीं हुआ और वे आराधनाप्राप्ति कर मर गये.
ओमोदरिए धोराए भहबाहू असंकिलिट्ठमदी । घोराए तिगिच्छाए पडिवणो उत्तमं ठाणं ।। १५४४ ॥ अवमोदर्यमंत्रेण भद्रबाहुमहामनाः ।।
बुभुक्षाराक्षसी जित्वा स्वीचकारार्धमुत्तमम् ॥ १६०५ ।। विजयोदया-ओमोदरिक घोराप पोरणाबमोदयण तपसा समन्वितः । महराइभसंकिलिमदी भद्रबाहुरसं. क्लिष्टचित्तः । घोराप तिर्गिच्छार घोरया क्षुधा बाधितोऽपि पडिवण्णो उत्तमं ठाणं प्रतिपन्न उत्तमाय ।।
मूलारा-ऊमोदरिए अवमोदर्वेण तपोविशेषेण विशिष्टः । तिगिछाए. बुभुक्षया ।
अर्थ-धोर अवमोदर्य तप करनेवाले भद्रबाहु युनि तीव्र भूखसे पीडित होनेपर मी संकेश परिणाम के वश नहीं हुए और उन्होने रत्नत्रय को प्राप्त कर लिया.
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