SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1420
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलागधना आश्वासः १४०३ विराधितो भवन्मानो वचनैः कटुकादिभिः । मिक्षयसपापापा जिहासति । १९७३ ।। विजयोदया-परुषथयणाविगेहि परुषषचनादिमिमानी पिराधितः सन् ॥ बारपारुष्यादिप्रयोगे दोषानाह--- मूलारा-विष्फुरिसिदो चिराधितः । उदाणं गुणश्रेणितः पतनं । दुध्यां वा । अवक्कमणे सम्यक्त्वत्यागं । कठोरादिक वचन चोलनेसे कोनसा दोष उत्पन्न होता है। इस प्रश्नका उत्तर-- अर्थ-परुपवचनादिकोंसे यदि उसकी भत्सना की जावेगी तो वह संयमबसे भ्रष्ट होगा, अथवा दुनि को प्राप्त होगा, किंवा सम्यक्त्वका त्याग कर मिथ्यात्वी बनेगा. तस्स पदिण्णामेरं भित्तुं इच्छंतयस्स णिज्जवओ !! सम्बादरेण कवयं परीसहणिवारणं कुज्जा ॥ १५१३ ॥ निर्यापन मर्यादां तस्य प्रक्षु मुमुक्षतः॥ कर्तव्यः कवची गाढः परीषहनिवारणः ॥ १५ ॥ विजयोदया-तस्स पदिणामर नस्य स्वप्रतिक्षाज्यवस्था मर्नु वांछतो निर्यापफसरिः कवचं कुर्यान्निवारणक्षने । तस्य प्रतिज्ञालंघनोन्मुखत्वे प्रतिविधानमनुदानि.. मूलारा-मेरे व्यवस्थाम् ॥ अर्थ-जब क्षपक प्रतिज्ञाभंग करनके लिये उद्युक्त होगा तब निर्यापकाचार्य क्षपकको प्रतिज्ञा भंगसे निवृत्त करनेकलिय कवच करें, १४०३ णिदं मधुरं पल्हादणिज्ज हिदयंगमं अतुरिदं वा ॥ तो सीहावेदत्वो सो खवओ पण्णवतेण ॥ १५१४॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy