________________
आश्वासा
मागधना
विजयोदया-संवारत्थो संस्तरस्थः क्षपको यदा क्षीणो भवेत्तदा व्युत्सृष्योऽनकविकल्पः पूर्वविधिनैव ।। अतीक्ष्णस्य यथोक्तपानकत्यजनविधिमनुस्मरयति ---
गूलारा- अतिमीण इत्यर्थः । तो तथाविधानकदानात् । पोसरिदन्यो त्याजयितव्यः । पुम्वविधिणेव हानिसूजानक्रमणव ।।
अर्थ संस्तरपर सोया हुआ क्षपक जब क्षीण होगा तच पानकके विकल्पका भी · हानि ' नामक सूत्रके • अनुसार त्याग करना चाहिये.
एवं संथारगदस्स तस्स कम्मोदएण खवयरस ॥ . अंगे कच्छइ उछिज्ज वेयंणा उझाणविग्घयरी ॥ १९९३ ॥
इत्थं शुश्रुषमाणस्य संस्तरस्थस्य वेदना ।
पूर्वकर्मानुभावन काय काप्यस्य जायते ॥ १५५३ ।। विजयोदया-एवं संधारगदस्स एवं संस्तरगतस्प क्षपकस्य कर्मादयेन कचिदुदनोपजायते ध्वानविनकारिणी।
इत्थं शुश्रुषमाणस्यापि' दुष्कृतोदयवशात्कस्यचिदंगे वेदनोत्पश्ते इत्याहमुलारा-कत्यह कचित्कुत्यादौ । वेदण्या शूलादिपीडा ।।।
अर्थ-संस्तरपर आरूढ हुए क्षपकके शरीरमें कर्मक उदयसे ध्यान में विघ्न उत्पन्न करनेवाली वेदना उत्पन्न होती है अर्थाद पेंट बगरह शरीरके किसी अवयव में शुलादि पीटा कर्मादयसे उत्पन्न होती है.
------ ------- -------- बहुगुणसहस्सभरिया जदि णाबा जम्मसायरे भीमे ॥ भिज्जदि हु रयणभरिया णावा व समुहमज्झम्मि ॥ १४२४ ॥ दर्शनज्ञानचारित्रतपोरत्न भृतस्ततः ॥ संसारसागरे घोरे यतिपोतो निमज्जति ॥ १५५४ ॥
१९२