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________________ पूलारावना आश्वासः अर्थ-आचार्यरूप सूर्यके उपदेशरूप किरणोंस क्षपकका मुखकमल प्रफुल्लित होता है. चिन समतासे निर्मल होकर उसमेंसे प्रीतिरूपी मकरंद बहने लगता है. क्यणकमलेहिं गणिअभिमुहिं सांबस्थिदस्थिपत्तेहि ॥ सोभदि ससभा सूरोदयम्मि फुलं व गलिणित्रणं ।। १४७८ ॥ संरांति प्रभावेण तत्सदो मुखपंकजैः॥ सरोवरमिवाकीर्ण पविकसित रयः ॥ १५३८ ॥ • घिजयोदया-बयणकमलेहिं बदनकमलैः। यतीनां गणिनोऽभिमुने विस्तृताक्षिपत्रैः सा सभा शोभा वहति स्म । सूर्योदये पुषितनलिनवनमिय ॥ मूलारा-सोभदि शोभते स्म । सोहदि य इति पाठे तत्कालापेक्षया वर्तमानता । उक्त प गुरु येन मुखोमोजे विस्मृताक्षिदलैःसता ॥ शोभति स्मोदयं मानोः कुखं पद्मवनं यथा ।। अर्थ-आचार्यके समक्षमें जिनके नेत्रकी पापनी विस्मित हुई है पेसे यतिओंके मुखकमलोंसे बह मुनि समा सूर्योदयमें प्रफुल्लित कमलवनके समान शोमा धारण करती है. गणिउवएसामयपाणएण पल्हादिदम्मि चित्तम्मि ॥ जाओ य जिवुदो सो पादूणय पाणयं तिसिओ ।। १४७२ ।। प्राप्योपदेशपीयूष क्षपकोऽजनि निर्वृतः ॥ समस्तश्रमविध्वंसि तृषार्त इव पानकम् ॥ १५३५ ॥ विजयोदया-गणि उपएसामयपाणएण गणिनः उपदेशामृतपानकेन प्रल्हादिते चित्ते जातोसी सुष्टु निर्वृतः तृषितः पान पीत्वेष ॥ गुरुपदेशकृत्तां क्षपकस्य निति दृष्टांतेन स्पष्टयतिमूलारा-अमदपाणएण अमृतपानकेन । || १३८४ -
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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