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________________ मूलाराधना आवायुः उनके अर्थ होंगे. अतः सामान्य पदार्थ ही शब्दका वाच्य होता है यह मत मानना चाहिये. विशेष पदार्थ ही शब्दका अर्थ है ऐसे मतका विवेचन इस प्रकार है-जगतमें लोक किसी पदार्थका ग्रहण करते हैं, किसीका त्याग करते हैं और किसीकी उपेक्षा करते हैं ऐसा व्यवहार देखने में आता है. इस व्यवहारमें प्रवृत्ति करनेके लिये शब्दोंका प्रयोग किया जाता है. जो दुःखका कारण है वह वस्तु छोडते हैं, जो सुखकर होती है वह चीज लोक लेते हैं. जिससे मुख और दुःख दोनों भी उत्पन्न नहीं होते है ऐसी चीजसे लोक उपेक्षा करते हैं अतः विशिष्ट वस्तु ही सुख या दुःखकी उत्पादक मानी जाती है, जैसे स्वी, वस्त्र, गंध पुष्पमाला वगरे पदार्थ विशेषरीतीसे सुख साधक है ऐसा समझकर लोक इनका ग्रहण करते हैं. जो दुःखके कारण है एसे समीपस्थ कंटक शत्रु वगैरह पदार्थोंका त्याग करनकी इच्छा करते है. शुन्दके द्वारा भी ऐसे ही पदयाका निवेदन होता है ऐमा समझना चाहिये, अर्थात् शब्दका अर्थ सामान्वपदार्थ नहीं है किंतु विशेष ही समझना चाहिये, अनेक पदार्थोमे रहनेवाला सादृश्य एक शब्दके द्वारा उल्लेखित होता है अतः शब्दका विशेष पदार्थ अर्थ नहीं है ऐसा मानना अयोग्य है. जैसे गो शब्द समस्त सदृश गायोमें प्रयुक्त होता है अतः गो शब्दका विशेष पदार्थ वाच्य नहीं हैं, ऐसा कहना अयोग्य है. उस गो शब्दका दुसरे शब्दसे जब संबंध होता है तब विशेष पदार्थका उससे अनुभव अवश्य होता है. शब्दका विशेष पदार्थ ही पाच्य है ऐसा विशेष पादियोंका मत है. सामान्य पदार्थ और विशेष पदार्थ दोनों शब्दके द्वारा प्रतीत होते हैं ऐसा जैनियोंका मत है-उसकी सिद्धि आचार्य करते है -'न हिंस्याः प्राणिनः' अर्थात् 'प्राणिओंकी हिंसा नहीं करनी चाहिये ' इस वाक्यमें माणि शब्द संपूर्ण प्राणिओंका चाचक है. दुसरा बाक्य 'देवदत्तमान्य' देवदत्वको लाओ यहां देवदत्त शब्द पुरुष विशेएका वाचक है. अर्थात् शब्द सामान्य और विशेष दोनो पदार्थोके वाचक है ऐसा जैनियाका मत है. ___ अतः प्रस्तुत बिपयम-सम्यक्त्याराधनामें क्या सामान्य सम्यक्त्वका ग्रहण करना चाहिये ? अथवा उसके विशेषाका ग्रहण करना चाहिये ? ऐमी शंका उपस्थिन होती है. उसका आचार्यन इस प्रकार निरमन किया है सम्यग्दर्शनके उपशम सम्यग्दर्शन, क्षायिक सम्यग्दर्शन और क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन ऐसे तीन भेद है. इनमें से किसी भी सम्यग्दर्शन की जो आराधना करता है उसको पहिली सम्यक्त्वारधना होनी है. औपशमिक सम्यग्शन-अनंनानुबंधि क्रोध, मान, माया और लोभ, तथा सम्यक्त्य, मिथ्यात्व और . . ... .. .ain - -
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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