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मलाराधना
आश्वास:
सम्पमिथ्यात्व ऐसे सात कर्म प्रकृतिओंका उपशम होनेसे जो तत्वोंके उपर श्रद्धान होता है उसको औपशमिक सम्यग्दर्शन कहते हैं.
क्षायिक सम्यक्त्व-उपर्युक्त सात प्रकृतियोंका क्षय होनेसे जो जीवादि सात तत्वोंके ऊपर श्रद्धा होती है वह क्षायिक सम्यक्त्व है.
क्षायोपशमिक सम्यक्त्व---इन सात प्रकृतियोंमेसे किसी प्रकृतियांका उपशम और अन्य प्रकृतियोंका क्षय होनेसे जो सवश्रद्धान होता है वह क्षायोपशामक सम्यग्दर्शन है.
'अविरदसम्मादिही मरंति बालमरणे' ऐसा पूर्वमें कहा है. अर्थात् उनके मरणको बालमरण कहते है. अविरत सम्यग्दृष्टि इस सामासिक शब्दमें अविरत शब्द विशेषणरूप है और सम्यग्दृष्टि यह शब्द विशेष्य है. यह विशेष्य प्रसिद्ध है. अर्थात् तत्वार्थ श्रद्धान करनेवालको सम्यग्दृष्टि कहते हैं यह बात सुप्रसिद्ध है. प्रसिद्ध पदार्थों में विशेषण विशेष्यभाव होता है.
तस्मारतीतीनोऽभिषेप गायनसिपोरा -
सम्मादिठी जीवो उवइट पवयणं तु सहइ ॥ सदहइ असम्भावं अयाणमाणो गुरुणियोगा ॥ ३२ ॥ मन्यते दर्शितं तत्व जन्तुना शुभदृष्टिना ॥
पूर्व ततोऽन्यधापदिमजानानेन रोच्यते ॥ ३५॥ विजयोन्या--सम्मादिही जीयो अत्यनया । अत्रैव पनघटना ' उयश्टुं पचयणं तु सददि यो जीयो सो सम्मा विट्टी'ति । उपाई उपवियं कथितं । ननु उपर्यो विशिरथारणक्रिया तथा हि प्रयोग-उपविष्टा या उच्चारिताः इति। सत्यम्, समुच्चारणक्रियस्तच वर्तते नान्यत्र इत्यत्र न निबंधनं किंचित् । यथा गां दोन्धि इत्यादिषु सास्नादिमति एप्रयोगोऽपि गोशम्बो यागादिषु अपि वर्तते एवमिदापीति किं न गृह्यते ? उपदिष्टमपि किन बेसि ल्यादौ कधितमिति प्रतीतिरुपजायते सा कथमपास्यते । प्रायोग्यवृत्तिसमधिगम्यो हि शब्दार्थः । प्रोड्यन्ते जीवादयः पदार्था अनेनास्मिनिति वा प्रवचनं जिनागमः । प्रकर्षश्चोक्तः ऐएपमाणाधिरोधिवा वस्तुयाथारम्यानुसारिता च । मबचनवाच्योऽर्थः साहचर्यात्प्रवचमिति संगृह्यते । तु शचः पवकारार्थः । स च क्रियापदापरतो द्रष्टव्यः । व्याख्यातं जैनागमार्थ यः श्रधात्येष न