SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लाराधना समेऽप्यन्तशक्तित्ये सर्वेषामईतामयं ।। देवोऽस्मै प्रभुरेषोऽस्मा इत्यास्था मुरशामपि ॥६॥ आश्वासः जीवके विना आराधना होती ही नहीं अतएव प्रथम सम्यग्दर्शनाराधनाका आचार्य वर्णन करते हैं--- हिन्दी अर्थ--बीचके सूत्रमें पालमरणका वर्णन किया है, उस मरणका स्वामी सम्यग्दर्शन आराधनाका आराधन करनेवाला जीव है. अतः बालमरणका सम्यग्दर्शनके साथ संबंध सिद्ध है. उपशमसम्यक्त्व, शायिक सम्यक्त्व और क्षायोपशमिक सम्यक्त्व इन तीन आराधनाओंमेसें किसी भी सम्यग्दर्शनकी आराधना करनेवाला सम्यक्त्वाराधक कहा जाता है. विशेषार्थ-यहां शकाकारकी शंका यह है- सम्यग्दर्शनके सर्व भेदोंकी आराधना करनेवाला सम्यन्दागाराधक है अथवा कोई एक सम्यग्दर्शनकी भी पागधना करनेवाला आराधक होता है? यहाँ ऐसी शंका क्यों होनी है ऐसा कोई पृळेगा तो उसका उत्तर शंकाकारने इस तरह दिया है.--आनाक मतभेदसे शब्दके दो अर्थ माने गये है. अर्थात् कोई आचार्य शब्द सामान्य अर्थके वाचक है ऐसा कहते हैं, और दुसरे कोई आचार्य उसका विशेष अर्थ वाच्य होता है ऐसा मानते है. अर्थात सम्बग्दर्शन इस शब्दका सामान्य अर्थ सम्यग्दवीन सामान्य ऐसा है ऐसा किसीका मत है और विशिष्ट सम्यग्दर्शन ही सम्पग्दर्शन शब्दका वान्य है ऐसे अन्य आचायाँका मत्त है. अतएव हमने उपयुक्त शंकाकी है ऐसा शंकाकारने अपनी शंकाका समर्थन किया है.. आचार्य क्रमशः दोनोंके मतोंका दिग्दर्शन करके अनंतर शब्दका अर्थ जैनमतसे क्या होता है इसका निरूपण करेंगे. प्रथमतः शब्दका सामान्य ही अर्थ है इस मतका निरूपण करते हैं-- शब्द सुनने पर अर्थसामान्यका ही अनुभव आता है, जैसे किसीने गौ लाबो ऐसा वाक्य कहा इस वास्यके सुननेसे सुननेवालेको काली गाय, चितकबरी गाय, वा सफेत रंगकी गाय ऐसा ज्ञान नहीं होता है, किंतु गोसामान्यका ही उसको बोध होता है. शब्दका श्रवण करनेके अनंतर जो अर्थ बुद्धीमें झलकता नहीं वह शब्दका अर्थ कैसे माना जायगा युद्धीमें न झलकनेवाला. भी अर्थ यदि माना जायगा तो अमुक शब्दका अमुक ही अर्थ होता है ऐसी अर्थव्यवस्था नहीं होमी. अर्थात् गोशब्दका अर्थ जैसा गाय होता है वैसा भैस, घोडा वगरे भी
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy