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________________ SHAN लागवना आश्वासः इंद्रियजये क उपाय इत्याशंकायां इंद्रियकवावधिषयाणां शुभाशुभत्वे अनवस्थितः । ये शुभास्त एवेवानी अशुभाः । अशुभाये ते एष शुभाः। ये तु अशुभतया दोषा इदानी हरि से शुभा इति गृहीता न त्वशुमा जातात एवामीइति कथं नानुरागस्तत्र ये चाऽशुभास्तेपु कर्थ वेषः शुभता प्रतिपस्यमानेषु इति निवेदयति जे आसि सुभा एम्हि असुभा ते चेव पुग्गला जादा ॥ जे आसि तदा असुभा ते चेव सुभा इमा इण्डिं ॥ १४१५ ॥ पुद्गला ये शुभाः पूर्वानुमाः सन्ति ते पुर। अशुभाः पूर्वमासन्ये सांप्रत सन्ति ते शुभाः॥१५७१ ॥ विजयोदया-जे आसि शुमा पम्हि ये. पुद्गलाः शुभा वासभिवानी त ययाशुभा जाताः । ये चासंस्तदा अशुभा ते चैव शुभा इदानी इति न तो रागःषौ युक्तौति शिक्षयति ।। यवमिदिवजयः सूत्रे विधेयवया नियुक्तस्ताई कस्तत्रोपायो नीरूपायाः साध्यसिद्धेरयोगात् इत्यनुयुजानमनुशास्ति मूलारा-आसि पूर्वकाले भूताः । सुभा इष्टकामिन्याविरूपसामापद्य मोग्यबुद्धिमादधानाः शोभना इति गृहीताः। अमुभा शुभरपरीत्येन गृहीताः । तदा प्राक्तनमुक्त्युपक्रमकाले असुभा अनिष्टस्ठ्यादिरूपतामापद्याभोरयमतिमातन्तोऽशोभना इति गृहीताः । असुभा शुमव्यत्यासेन प्रतिपत्राः। तदा तेष्वनयस्थितशुभाशुभरूपेषु कस्तत्वविदो रागद्वेषावतार प्रचार इति शिक्षारहस्यम् ॥ इंद्रियोंको जीतनेमें कोनसा उपाय है ऐसी शंका होनेपर उत्तर देते हैं. इंद्रिय और कषायोंके विषयमें शुभाशुभपना निश्चितरूपसे नहीं कहा जाता है. जो विषय शुभ थे वे वर्तमान समयमें अगम बनते हैं. और जो अशुभ थे ये शुभ भी होते हैं. अशुभ होनेसे जिनका यह जीव द्वेष करता था वे ही अब शुभ बननेपर उनमें यह जीव अनुरक्त होता है. और जो अब अशुभ हैं वे कालांतरमें शुभ होनेवाले हैं इसलिए उन से द्वेष करना भी योग्य नहीं. तात्पर्य यह है कि, जो अशुभ हैं ये शुभ बनेंगे तथा जो शुभ हैं वे अशुभ बनेंगे अतः इस जीवका रागद्वेष युक्त होना योग्य नहीं है. यही आभप्राय आगेकी गाथामें स्पष्ट करते हैं अर्थ--जो पुटूल गुभ थे वे ही अब अशुभ होगये हैं तथा जो पुल अशुभ थे दे अब शुभरूप हुए हैं अतः इन के ऊपर रागद्वेप करना योग्य नहीं है. १३४५
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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