SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1356
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लाराधना आवासः अर्थ-जैसे शंखलासे जकडे हुए चोर स्वस्थानमें स्थिर बैठते हैं उनसे कुछ उपद्रव नहीं होता है वैसे इंद्रियरुणयरूपी चोर शुभभावनारूपी शृंखलाओंसे जच जखडकर चधेि जाते हैं तब वे रागादिक विकारको उत्पत्र | करनेमें असमर्थ हो जाते हैं, इंदियकसायबग्घा संजमणरघादणे अदिपसत्ता ॥ बेरग्गलोहदढपंजरेहिं सक्का हु णियमेदुं ॥ १४०७ ॥ कषायाक्षमहाव्याघ्राः संयमघाणभक्षिणः ।। अधिरोप्य नियम्यन्ते वैराग्यहनपजरे ॥१४६३ ।। विजयोदया-इंदियकसायवग्धा इंदियकपायव्याघ्राः संयमनरभक्षणे अत्यासता वैराग्यलोहढपंजरे नियन्तुं शक्या, शक्या षशे नेतुं ॥ मूलारा-अविपसत्ता अतीवासक्ताः । अर्थ-इंद्रियकवायरूपी व्याघ्र संयमरूप मनुष्यको भक्षण करने में अस्यासक्त होते हैं, इसलिय उनको वैराग्यरूप लोहेंके पिंजरे में बांधकर वश किया जा सकता है, विण्यवरताबापायाभमत विमभिःवरवाषना . इंदियकसायहत्थी वयवारिमदीणिदा उवायेण ॥ विणयवरत्ताबद्धा सक्का अवसा घसे कादं ॥ १४०८ ॥ नीता व्रतमहावारिं कषायाक्षमतंगजाः॥ वशा सत्यवशाः सन्तो बद्धा विनयरश्मिभिः॥ १४६४ ॥ विजयोदया-रदियकसायहस्थी इंद्रियकषायहस्तिमः प्रतधारीमुपनीताः विनयवरायद्धा अवशा अपि शक्या वशे नेतुं। मूलारा-बदवारि व्रतबंधनगर्तम् । अदिणीदा प्रवेशिताः । उचाएग विशिष्टयतिहस्तिनिदर्शनेन ॥ अर्थ-इंद्रियकपायरूपी हाथीआको प्रतरूप बंधनस्थानमें ले जाकर, विनयरूपी रज्जुसे बांधना चाहिये जिससे चे अवश होनेपर भी वश हो जाते हैं. ३४. OPil
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy