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________________ मूलाराधना १३४१ इंदिकसा यहत्थी वो सीलफलियमिच्छता ॥ धीरेर्हि रुंभिदव्वा विदिजमलारुप्पहारेहिं । १४०९ ॥ कषायाक्षगजाः शीलपरिखालंघनैषिणः || धर्तव्याः सहसा धीरैर्वृतिकर्णप्रतोदनैः ।। १४६५ ।। विजयोदया - इंद्रियपायहस्तिनः शीलपरिवालंघनैषिणो रोद्धव्या धीरैर्धृतिकर्णतोदप्रहरेः ॥ मूलारा — बोलेदु संघयितुं । फलि अलां । जमलार आरायुगलं || अर्थ — इंद्रिकशयरूपी हाथी जब शीलरूपी अगलाको उल्लंघने की अभिलाषा धारण करते हैं. तब धीर पुरुष उनको संतोषरूपी कर्णप्रहारों से वश करते हैं इंदियकसायहत्थी दुरसीलवर्णं जदा अहिलसेज्ञ ॥ णांकुसेण तया का कार्ड | १४१० ॥ कषायाक्षद्विपा मत्ता दुःशीलवनकांक्षिणः || ज्ञानांकृशैर्विधीयन्ते तरसा वशवर्तिनः ।। १४६६ ।। , विजयोदयायिक साहस्थी इंद्रिय काय स्तितः दुःशीलबनं प्रवेष्टुं यदाभिलपति तदा अवशा अपि बसे कर्तुं शक्यते शानां कुशेन ॥ मूलारा - अहिलसेज प्रवेष्टुमिच्छेयुः । अर्थ - इंद्रिय कायरूपी हाथी जब दुःशीलरूप वनमें प्रवेश करने की इच्छा करता है तब भेदज्ञानरूप अंकुश अवश होने पर भी वश हो जाता है. जदि विसयगंधहत्थी अदिणिज्जदि रामदोसमयमत्ता ॥ विष्णाणण जोहरस बसे णाणंकुसेण विणा ॥ १४११ ॥ आवासः ૬ १३४१
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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