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________________ आश्वासः मूलाराधना मूलारा-अमज्झस्थे पंचलान । परिहत्थे पटून् । अर्थ-हमेशा चंचल, और तीनो कालोमिभी दोष उत्पन्न करनेमें निपुण ऐसे कषायरूपी मर्कटोंको यतिराज संयमरूप दोरीसे गांधत्ते हैं. जिससे वे कुछभी अपाय नहीं उत्पन्न करेंगे. धिदिवम्मिएहि उबसमसरेहिं साधूहि णाणसत्थेहिं ॥ इंदियकसायसत्तू सक्का जुत्तेहिं जेदुजे ॥ १४०५ ॥ महोपशमसत्वाव्यज्ञानातिवर्मितः॥ साधुयोधैर्विजीयन्ते कषायेन्द्रियषिविषः ॥ १.११॥ विजयोदया-धिदिम्मिपहिं तिसनः, उपशमशरैः साधुभिहानारुपयुक्तैरिद्रियकवायशत्रयो डेतुं बाक्याः ॥ पुनरुभयनिर्जय गाथाचतुष्टयेन व्याचष्टेमूलारा-धिदिवम्मिदेहिं संतोषसभबैः । णाणसत्तेहिं ज्ञानसत्वैः । जुत्तेहिं उपयुक्तः ॥ अर्थ-संतोपरूपी कवच पेहेनकर हायमें जिन्होंने उपशमरूप पाण लिये हैं ऐसे साधु, भेदज्ञानरूपी शस्त्रोंसे इंद्रियकरायरूपी शयको जीत लेते हैं. इंदियकसायचोरा सुभावणासकलाहिं वझंति ॥ ता ते ण विकुब्बंति चोरा जह संकलाबद्धा ॥ १४०६ ।। कषायाक्षद्विपो बद्धा भावनाभिस्तपस्विना॥ शृंखलाभिरिव स्तेना न दोषं जातु कुर्वते ॥ १४६२ ॥ विजयोदया--दियकसायचोरा इंद्रियकरायचौराः शुभध्यानभावशृंखलाभिर्वध्यते । बंधस्थास्ते न विकार कुर्वन्ति शृंखलाधरचोरा इव ॥ मूलारा-ण विकुवंति विरूपकं न कुर्वति ॥ १३३९
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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