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बलाराधना
आधास:
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अथवा माथामें 'पाओग्गगमणमरणं' ऐसा मी पाठ है. उसका ऐसा आभप्राय है-भवका अंत करने लायक ऐसे संस्थान और संहननको प्रायोग्य कहते हैं. ऐसे संहनन और संस्थान की प्राप्ति होना यह प्रायोग्य | गमन है. अर्थात् विशिष्ट सहनन और विशिष्ट संस्थानवाला ही प्रायोग्यगमन मरणका अंगीकार करता है.
मलारतिज्ञामरण--- मा. ना. वर्ष आहार और प्रतिज्ञा शब्दका अर्थ त्याग होता है अर्थात् आहारका त्याग कर मरण करना वह भक्तप्रतिज्ञामरण है. यह मरण स्वपरवयात्य की अपेक्षासे होता है. अर्थात् इस मरणमें मल्लेखनाधारक की परिचारक मुनि शुश्रूषा करने हैं तथा वह भी अपनी शुश्रुषा करता है. यद्यपि आहारका त्याग इंगिनीमरण और प्रायोग्यगमन मरणमें भी होता है तो भी इसको ही रूढीसे भक्तप्रतिज्ञा कहते हैं, अर्थान स्वपरवैयावृत्यकी अपेक्षा करके जो मरण किया जाना है यह भक्तप्रतिज्ञामरण है. ऐसे विशिष्ट मरण को ही भक्तप्रतिज्ञा कहते हैं.
इंगिनी मरण-स्वाभिप्रायको इंगित कहते हैं, अपने अभिप्रायसे युक्त होकर स्वयं ही स्वतः की शुश्रषा कर जो मरण किया जाता है. यह इंगिनी मरण है. परिचारक मुनिकी शुश्रुषा इसमें क्षपक मुनि नाहते नहीं है.
यथोक्त चास्त्रिका पालन करनेवाले मुनिके ऐसे तीन मरण कहे है इन मरणाको सामान्य रीनीसे पंडित मरण कहते है.
इतरयोलमरणयालबालपोरिस्यनयोः स्वामित्वसूचनार्थगाथा
अविरदसम्भादिट्ठी मरंति बालमरणे चउत्थम्मि ।। मिच्छादिछी य पुणो पंचमए बालबालम्मि ॥ ३० ॥
+ सदाचारसे प्रदर्तनेवाले सव संयत अथवा असंयत जगगमें भाधु कहे जाते हैं. परंतु यहां मुनिओंका ही प्राण होवे इस हेतुले 'अधुत्तचारिस्स यह साधुका विशेषण करके यथोक्त चारित्र पालनेवाले मुनिका ही पहण किया है।