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मृल.घना
आश्वासः
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फेचित् । यत्पुनः बधैयावृत्तिसापेक्षमेव । जहुत्त चारिम्स । येन प्रकारेण उक्त अवे तेन चरितुं शीलं यस्य तस्य यधोक्तचारिणः संयतयेत्यर्थः ।
पंडितमरणके कितने भेद है और उसके स्वामी कितने हैं ऐसी शंकाका उत्तर आगेकी गाथा देती है
हिंदी अर्थ-आगममें जिस प्रकारसे चारित्रका वर्णन है बैसा स्वयं आचरण करना यह जिनका शील है अर्थात आगमसे अविरुद्ध चारित्र जो धारण करते हैं ऐसे मुनिराजका पंदितमरण पादोपगमनमरण, भक्त प्रतिज्ञा मरया और झंगनी मरण ऐसे तीन भेदयुक्त है. अर्थात् निरतिचार मुनिराजके मरणके भेद उपर्युक्त गाथामें तीन कहे हैं.
विशेषार्थ-पादोपगमन मरण इसका शब्दार्थ - 'पादाभ्यामुपगमनं दौकनं तेन प्रवर्तितं मरणं पादोपगमन' अपने पावोंके द्वारा संघसे निकलकर और योग्य प्रदेशमें जाकर जो मरण किया जाता है वह पादोपगमन मरण है. इस मरणको चाहनेवाले मुनिराज अपने शरीरका चयावृत्य स्वयं भी नहीं करते हैं और इतर मुनियोंके द्वारा भी स्वशरीरकी शुश्रूषा नहीं कराते हैं, ऐसे मरणको पादोपगमन मरण्य कहते हैं.
शंका-इतर मरणमें भी पावोंके द्वारा संघसे मुनिराज अन्यत्र चलकर मरण करते हैं अतः इतर मरणोंको भी यही नाम प्राप्त होनेसे पंडितमरणके तीन भेद नहीं ठहरेंगे एसी शंकाका उत्तर इस तरह है-पादोपगमन मरण यह नाम कार्डिका आश्रय लेकर विशिष्ट मरणामें ही आचार्यने प्रयुक्त किया है. इस पादोपगमन मरणका स्वरूप
आगे ग्रंथकार स्वयं कहेंगे, रुदीमें जो शब्दकी निरुक्ति-व्युत्पत्ति करते हैं उसका मतलब यह शब्द किस धातुको कोनसा प्रत्यय जोडनेसे बन गया यह दिखानेका होता है, जैसे गछतीति गौः' ऐसी गो शब्दकी व्युत्पत्ति है, इसमें गमनक्रियाका कर्तत्व इसमें व्यक्त होता है, एतावता गो शब्दसे माहषी, अश्व वगेरह प्राणी गो शन्दका अर्थ नहीं माना जाता है. वैसे प्रकृत विषयमें पादोपगमन यह शब्द विशिष्ट मरणका वाचक माना जाता है. तथा वह मरण भक्तप्रतिज्ञा और मंगनीमरणसे मित्र ही है ऐसे समझना चाहिये,
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