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________________ आश्वासा लाराधना विमोगा---एपस्यमय । जामदग्गिस्स जामदग्न्यस्य । बज मंज। धिसूपा गृहीत्वा । कत्तषिरिमो वि कार्तषीयोऽपि । णिधण पत्तो निघन प्राप्तः । सकुलो सबंधुवर्गः । ससाहणो सबलः । लोभदोसण लोभदोषेण | लोमः ॥ लोभदोषमहत्त्वमथाख्यानेन म्यनक्ति-- मूलारा--जामदगिरस जमदग्निसूनोः । परशुरामस्येत्यर्थः । वज व्रज कामनुमित्यर्थः । समाहगो चतुरंगयलेन सा ॥ उक्त च-- रामस्य जामदग्न्यस्य गां हत्वा लुन्धमानसः ।। कार्तवीर्यों नृपः प्राप्तः सकुलः सबलः क्ष्यम् ॥ लोभदोपाः । कषायविशेषदोषाः || अर्थ-जमदग्नि राम अर्थात् परशुरामका सर्व गौका समूह कार्तवीर्य राजाने लोभवश होकर ग्रहण किया | था. इस लोभदोपसे वह अपने बंधुवर्ग और सर्व सैन्यके साथ परशुरामके द्वारा मारा गया. लोम वर्णन समाप्त. ण हितं कुणिज्ज सत्तू अग्गी बग्छो व किण्डसप्पो वा ॥ जं कुणइ महादोस णिन्वुदिविग्घ कसायरिवू ॥ १३९४ ॥ शत्रुसोनलन्यानाः कवाचितन्न कुर्षते ।। करोति महापोषं कषायारिः शरीरिणाम् ।। १४५०।। विजयोदया-स्पष्टा ॥ कपायसामान्यदोषसंप्रहगाथामाहमूलारा-पष्टम् ।। अर्थ-शत्र, अग्नि, बाघ, और कृष्ण सर्प इनसे भी वह महादोष उत्पन्न नहीं होता है, जो कवायशत्रु ||R उत्पन्न करता है. लोभापाय मोक्षप्राप्तीमें महाविघ्न उपस्थित करता है. १३३३
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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