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________________ मूलाराधना आश्वास उसको भी कषाय कहते हैं. यह रस जैसा यखादिकोंका वर्ण अन्यथा करता है, उसी तरह क्रोध, मान, माया और लोभ ये कवाय जीवके उत्सम क्षमा, विनय, सरलपना, और निस्पृहपनाको अन्यथा करते हैं, उनका नाश करते हैं. अतः इन क्रोधादिकोंका 'कवाय' यह नाम अन्वर्थक है. के मकान और भाव कषाय ऐसे दो भेद हैं. क्रोध, मान, माया लोभ इन कषायवेदनीय कर्मको द्रव्यकषाय कहते हैं. और इनके उदयसे आत्माकी क्रोध मान माया लोभरूप परिणति हो जाती है वह भावकषाय है, केवली भगवानके द्रव्यकषाय और भावकषाय दोनों भी नष्ट हो चुके हैं अतः वे क्षीणकषाय इस अन्वर्थ नामसे युक्त हुए हैं. इंद्रियां, मन और प्रकाशादिक बस्तुओंकी अपेक्षाके विना युगपन-एकदम संपूर्ण द्रव्योंकी त्रिकालवी पर्यायें जानने में जो ज्ञान समर्थ होकर समस्त पदार्थोम प्रयत्न होता है वह केवल ज्ञान है. यह ज्ञान केवल अर्थात् असहाय है. इंद्रियादिकोंकी मदत न लेकर स्वयं अपने सामथ्यसे पदार्थोंको जानता है अतः इसको केवल-असहाय ऐसा कहते है, ऐसा माहात्म्यशाली ज्ञान जिनको हैं वे मुनि केवली अर्थात् केवल ज्ञानी कहे जाते हैं, केवली यह शब्द सयोग केवली और अयोग केवली दोनोंमें रूद है नो भी यहाँ केवली शब्दसे अयोगकेवलीका ही ग्रहण करना चाहिये. इसका भी कारण यह है कि-सयोगकेत्रालि गुणस्थानमें मग्ण नहीं होता हैं अतः अयोग केवलीका ही केवली शब्दसे ग्रहण होता है. काई २ विद्वान केवली शब्दका अर्थ शीणकपाय मुगस्थानवर्ती मुनि और भूतकवली ऐसा करते हैं. पन गमा अर्थ करना अयोग्य है. अंत शब्द केवली शब्दके पूर्व में जोड देनेने ही भूतकेवली ऐसा अर्थ होगा. अत्तशब्द रहिन केवली शब्दका किसी भी आगममें समस्त श्रुतरूपी रत्न धारण करनेवाले श्रुतफेवलीके विषय में प्रयोग किया है ऐसा देखने में आया नहीं. प्रसिद्ध शब्दका अर्थ प्रकरणमें यदि असंभवरूप मालूम पडेगा तो अन्यार्थ की कल्पना की जा सकती है. यहां तो प्रसिद्ध अर्थ ही योग्य जंचता है, अतः श्रुतकेवली ऐसा अर्थ निकालने की अपेक्षा नहीं है, दुसरा कारया यह भी है कि, पांडित्यका प्रकर्ष केवलज्ञानियों में ही होता है अन्यत्र श्रुतकेवल्यादिकमें नहीं है. अतः पंडितपंडित केवली भगवानको ही कहते हैं. केवली भगवानमें क्षायिकज्ञान, क्षायिक दर्शन और चारित्र रहते हैं यह पांडित्यप्रकर्ष केवलीमें है. परंतु यह श्रुतकेवलीमें नहीं है. अतः केवली शब्दका अर्थ श्रुतकेवली ऐसा समझना योग्य नहीं है, AAAAMADARANASAN
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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