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________________ पावना seeds विस्तारित जीवोंके करते हैं. आवक स्थल हिंसादि पांच पापोंसे विरक्त रहते है अतः उनको विरत कहते हैं, सूक्ष्मपापका ने त्याग नहीं कर सकते हैं इसलिये उनको अविरत भी कह सकते हैं. शंका- यदि श्रावकको आप 'विरत' ऐसा कहना चाहते हो तो उनको अविरत मत कहो, यदि अविरत कहोगे तो विरत कहना अनुचित है ? उत्तर- विरतत्व और अविरतत्वमें विवक्षाभेदसे विरोध नहीं. जैसे एकही पदार्थको द्रन्यापेक्षा से और पर्यायापेक्षा एकसमयमें नित्यानित्य समझते हैं, अर्थात् द्रव्यरूप आधार में एक समय में नित्य और अनित्य ऐसे दो धर्म रहते हैं. वैसे अप्रत्याख्यानावरणीय कर्मका क्षयोपशम होने से मैं स्थूलपातको विरक्त हुए हूं लक्ष्मपातकोंसे नहीं ऐसा एकही परिणाम युगपत् उत्पन्न होता है. इसलिये विस्ताविस्तत्व में विरोध नहीं है. जहां एक पदार्थमें दो धर्म यदि अनुभव में आते हैं तो वहां विरोध कैसा ? विरोध अनेक आधारमें रहता है, जैसे शीतस्पर्श और उष्णस्पर्श एक आधार में नहीं रहता. विरताविरत जीव द्रव्य प्राण और भावप्राणके धारक है अतः वे जीव है. ये विरवाचिरत तृतीय मरण से बालपंडित मरणसे मरते हैं. यहां तृतीय शब्द वस्तुके परिणामगणनामें यदि उपयुक्त है ऐसा कहोगे तो गणनाके समय विस्तारितजीवको द्वित्व या त्रित्व भी प्राप्त होगा. तृतीय शब्दसे तिसरा गुणस्थान ऐसा अर्थ मानोगे तो सम्य मिथ्यादृष्टिको तृतीयपना प्राप्त होगा. संयतासंयतको तीसरेपना प्राप्त न होगा. अतः ' तृतीयेन ' ऐसा कहना योग्य नहीं है. यदि मरणकी अपेक्षासे तृतीयता मानते हो तो मरण सामान्यापेक्षा से एक ही है उसको तृतीयता नहीं है. विशेष मरणापेक्षा तृतीयता मानोगे तो भूतकाल में अनंतभरण हो चुके हैं और भविष्यत्कालमें भी बहुत होंगे अतः विशेषणापेक्षा भी यता सिद्ध नहीं होती. उत्तरत्र कहे हुए कमकी अपेक्षासे मरणकी वीयता ग्रहण करनी चाहिये. अर्थात् पहिला भरन पतिपतिमरण, दुसरे मरणको पंडितमरण कहते हैं. और तिसरा मरण बालपंडित इस नामका है. आश्वासर १ १११
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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