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मूलारापना
आभासः प्रायः । केवलज्ञानस्म मोहादिकर्मनिर्मूलनमूलत्वेन केवलिनः क्षीणकषायत्वविशेषणस्य निष्फलस्वात् । किं च मरण- 11 करणात् क्षीणकपाया इत्यनेन अयोगा निश्चीयते सवोगकधीलना मरणासंभवात् । क्षीणा विशपं गताः कपाया येण्याने श्रीणकपायवेदनीयाः तत्वादेन च विनष्टतन्मूलभावकपाय: मरंति द्रव्यप्राणांत्यजन्ति । सिद्धानामपि सत्ताचैतन्य पोधादिस्यभावप्राणधारावल अनजाबस्वभावाविपान । तथा चोक्तम्
जरि जीवसहावी गस्थि अभावो (ध मव्व हा तस्न ॥
ते होन्ति भिषण देहा सिद्धा बचिगोचरमदीदा । केबलिणो करणादिसम्ायकनिरपेक्षतया युगपन्निःशेपद्रवपर्यायसाक्षात्करणसमर्थ ज्ञानं ये नित्यमस्ति ते फेवलिनः । विरदाधिरदा एकस्मिन्नब समये स्थूलात्माणातिपातादम्यावृत्ताः सुक्ष्माचाव्यावृत्ताः श्रावकाः इत्यर्थः । जीवा: पुरुषाः न प्रथानं । सांख्या हि प्रधानस्य मरगमिच्छन्ति । तदियेण बालपंडितेन ।
जिनके भरणको पंडितपडित मरण ऐसी संज्ञा है वे पंडितपंडित कौन है. १ अर्थात् पंडितपंडित किनको कहते हैं ऐसे प्रश्नका उत्तर आचार्य देते हैं
हिंदी अर्थ-पंडितपंडित मरण, पंडितमरण और बालपंडित मरण इन तीन मरणोंकी जिनेंद्र देव नित्य प्रशंसा करते हैं. क्षीपाकपाय केवली भगवान पंडितपंडित मरासे मरते हैं. अर्थात् केवलीके मरणकी पंडित पंडित ऐसी संज्ञा है. विरताविरत जीवके मरणको पालपंडित मरण ऐसा नाम है.
गावार्थ-पंडितपंडितमरण खीणकसाया मरति केवलिणो' इस वाक्यमें 'मति' इस सामान्य मरणरूप क्रियाका 'पंडितपंडितमरण 'यह विशेष भरण कर्मरूपसे प्रतिपादन किया है. जसे 'गोपोएं पुष्टः' अर्थात् त्रैल जैमा पुष्ट रहता है वेला यह आदमी पुष्ट है. जैसे यहां पुटिसामान्यका गोपोषं यह कर्मसरीखा विशेषण है उसी तरह सामान्य मरणका ही पंडिनडितमरण यह एक विशेष प्रकार समझना चाहिये.
जो आत्माका घात करते हैं वे कषाय हैं, अतएव कपायशब्द की निरुक्ति आचार्य - कान्ति हिंसनि आत्मानमिनि कयायाः ' ऐसी कहते हैं. अथवा वृक्षों की छाल, मूल, पत्ते और फलोंका जो रस निकलना हैं
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