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________________ . मूलाराधना १२८० सिद्धिपुरमुवल्लीणा त्रि केइ इंदियकसायचोहि ॥ पबिलुत्ततरणभंडा उवहदमाणा णित्रद्वृति ॥ १३०८ ॥ केचिसिद्धिपुरासन्नाः कषायेन्द्रियतस्करैः ।। मुक्तमाना निवर्तते लुप्तचारित्रसंपदः॥ १३५३ ।। बिजयोदया-सिद्धिपुरमुघल्लीणा घि सिद्धिपुरमुपलीना अपि । कई केचित् । हायकमायचोरेहि रहियकपायचोरै।। पविलुत्तचरणभंडा अपमृतवारिप्रमोडाः । उम्रयमाणा उपसामिमानाः । नियहूति निर्वतन्ते । यथाछंदं गाथापंचकेना-- मूलारा-उवलीणा निकटीतषतः । उयहदमाणा खंडितसयमाभिमानाः । णियत्तंति मिध्यात्यमापतन्तीत्यर्थः ।। अर्थ-मोक्षनगरके समीप जाफरभी कितनेक मानि इंद्रिय और कषायरूपी चोरोंसे जिनका चारित्ररूपी । भांडवल लूटा गया है और संयमका अभिमान जिनका नष्ट हुआ है ऐसे होकर मिथ्यात्वको प्राप्त होते हैं. तो ते सीलदरिहा दुक्खमणतं सदा वि पावंति । बहुपरियणो दरिदो पावदि तिव्वं जधा दुक्ख ॥ १३०९ ॥ ततः सीलदरिद्रास्त लभसे दुःखमुल्यणम् ॥ बहुभेदपरीवारा निर्द्वना इव सर्वदा ॥ १३५४ ॥ विजयोदया-तो पश्चात् । ते सीलदरिदा ते शीलदरिद्राः । दुक्लं दुःख । अप्पंत अंतातीतं । सदा वि पार्वति सदा प्राप्नुवन्ति । बहुपरियणो बहुपरिजनो । दरिहो वरिदः । पावदि दुरव तिब्ध प्राप्नोति दुःख तीनं यथा ॥ गुलारा--बहुपरियणो प्रचुरपोष्यवर्गः ।। अर्थ-जिसका परिवार बहुत है ऐसा दरिद्री मनुष्य जैसे अतिशय तीव दुःखको प्राप्त होता है वैसे वे शीलदरिद्री मुनि हमेशा तीघ्र दुःखको प्राप्त होने हैं.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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