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मूलाराधना
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पंडितपंडित मरण प्रशस्ततम हैं, पंडितमरण प्रशस्ततर, बालपंडित मरण ईषत्प्रशस्त - थोडासा प्रशस्त है. बालमरण और बालबालमरण क्रमसे अविशिष्ट और अविशिष्ट तर है " ऐसी व्याख्या करते हैं. परंतु पंडित शब्द प्रशस्त इस अर्थ में किस प्रकरण में प्रयुक्त किया हुआ उन्होंने देखा हैं । जिससे वे ऐसा व्याख्यान करते हैं. दुसरे आगमका आश्रय न लेकर यह व्याख्यान किया गया हैं.
आगमान्तर में व्यवहार, सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र इनमें जो पंडित हैं ऐसे जीवोंका जो मरण वह पंडितमरण है ऐसा कहा है. उसके चार प्रकार हैं. जैसे - व्यवहारपंडित मरण, सम्यक्त्वपंडितमरण, ज्ञानपंडित मरण, और चारित्रपंडित मरण. व्यवहारादिक अर्थों में आगमान्तरमें पंडित शब्दका प्रयोग किया हुवा है. परंतु प्रशस्ततम, प्रशस्ततर वगैरे अर्थ में प्रयोग नहीं देखा गया है.
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ज्ञान, दर्शन और चारित्र में जिनका अत्यंत पांडित्य है ये पंडितपंडित हैं. इस तरहका पांडित्यका प्रकर्ष ज्ञानादिकांमें जिसका नहीं है अर्थात् जिनमें ज्ञानादि विषयक पांडित्य अल्प है ये पंडित हैं. जिसका विवेचन पूर्वमें कर चुके हैं. बाल्य और पांडित्य जिनमें हैं वे चालपंडित है. जिनमें चार प्रकारके पांडित्योंमेंसे एक भी पांडित्य नहीं है वे बाल हैं. तथा सबसे जघन्य जो वह बालचाल है. इन सबके मरणाको क्रमसे पंडितपंडित मरण, पंडितमरण. बालपंडित मरण, बालमरण और बालबाल मरण ऐसे नाम हैं.
पंडिद पंडिदमरणे खीणकसाया मरंति केवलिणो ॥ विरदावरदा जीवा मरंति तदियेण मरणेण ॥ २७ ॥
विज्ञातव्यमयोगानां तत्र पंडितपंडितम् ॥ देशसंयत जीवानां मरणं बालपंडितम् ॥ ३० ॥
विजयोदय- दिडिदमरणं खीणकसाया मरंति के लियो । सामान्यमृतेर्विशेषमृतिः कर्मतया निर्देष्टुं पंडित पंडितमरणमिति । यथा गोपोषं पुष्टः । श्रीणकसाया कपन्ति हिंसन्ति आत्मानमिति कपायाः शब्देन वनस्पतीनां मूलफलरस उच्यते । स यथा वस्त्रादीनां वर्णमन्यथा संपादयति एवं जीवस्य क्षमा । कषाय.
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