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मूलाराधना
आश्वास:
सत्राद्यानि त्रीणि मरणानि सुगतिगमननियवानिमित्तस्वाग्जिना स्तुवन्ति नेतरवयं तद्विपरीतत्वात् ॥ तथा पान्यस्मादानीय सूत्रे पठन्ति
पंडिवपंडिदमरणं च पंडिदं बालपंडिदं चेक ॥ एदाणि तिणि मरणाणि जिणा णिचं पससति ।।
मतरा प्रकारके मरणोमेसे पांच प्रकारके मरणोंका संक्षपसे मैं वर्णन करूंगा ऐसी ग्रंथकारने प्रतिज्ञा की है ये पांच मरण कौनसे हैं । ऐसी शंका होनेपर मरणका नाम निर्देश करने के लिये आचार्य गाथा कहते हैं
हिन्दी अर्थ-पंडितपंडितमरण, पंडितमरण, बालपंडितमरण, बालमरण और बालबालभरण ऐसे पांच मरण है.
विशेषार्थ- भवपर्यायप्रलयो मरण, मनुष्यादिभवके पर्यायका नाश होना वह मरण है ऐसा यदि मरणका लक्षण करोगे तो भवपर्याय अनेक प्रकारके है उनका नाश होना यह भी मरण है ऐसा मानना पडेगा. पर्यायोंका नाश और मरण इसमें कुछ विशेपता अनुभवमें न आवगी. यदि भवपर्याय अनेक हैं और उन सबका ही नाश होना मरण माना जाता है अतः पर्यायका नाश और मरण इनमें अंतर है ऐसा कहोगे तो मनुष्यमें मरणके पंच प्रकारोंकी संभावना न होगी. क्योंकि एक जीवका भी भवपर्याय अनंतरूपका होता है. नाना जीवोंकी अपेक्षा | से तो मरणके पांच प्रकार नितरां सिद्ध न होंगे.
'प्राणिनः प्राणेभ्यो वियोगो मरणं' प्राणोंसे प्राणीका अलग होना मरण है ऐसा यदि लक्षण करोगे तो सामान्यकी अपेक्षासे एकही मरण सिद्ध होगा. मरणके पांच प्रकार सिद्ध न होंगे. प्राणभेदकी अपेक्षासे मरणभेद मानोगे तो मरणके दश भेद होंगे. 'उदयप्राप्तकर्मपुद्गलगलनं मरणं' उदयमें आये हुए कर्मपुद्गलका खिरना वह मरण है ऐसा यदि कहोगे तो कर्मपुद्गल प्रतिसमयमें खिरते हैं अतः मरण के पांच प्रकार सिद्ध नहीं होते हैं, गुणभेदकी अपेक्षासे जीवोंके पांच प्रकार होते हैं अतः गुणोंके संबंधसे मरणके पांच भेद हम मानते हैं ऐसा यदि कहोगे तो यह कहना सयुक्तिक है.
यहां दुसरे विद्वान् अन्य तरहसे व्याख्या लिखते हैं