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________________ मूलाराधना १२४८ मूलारा - सुखे तृप्यति प्रीणितो भवति ॥ सवयं मृत अवगासेदूण आलिंग्यं उपरि पटिया था। सुसा णम्मि श्मशाने । कुणिमदेइसफासणेण कुथितयुवतिकलेवर स्पर्शनेन । सुखार्थति सुखाधिगमहर्षनिर्भरा भवंति ॥ अर्थ - श्मशान में व्यात्र प्रेतका भक्षण कर तृप्त होता है वैसे मूर्ख लोक दुर्गव शरीर के स्पर्शसे मेरेको सुख प्राप्त हो रहा है ऐसा कर अतिशय टर्षित होते हैं भपतु नाम सुख भोगस्तथापि तदत्यस्पमिति निवेदयति तह अप्पं भोगसुहं जह धावंतस्स अठितवेगरस ॥ गिम्हे उन्हातत्तस्स होज्ज छायाहं अप्पं ॥ १२५९ ॥ मध्यंदिनार्कत तस्य यावच्छायाव्यतिक्रमे ॥ वेगतो वावतः सौख्यं तावद्भोगनिषेवणे ।। १३०३ ।। विजयोदया तथा अप्यं भोगसुदं धावंतस्त्र अतिवेगस्स निथे उन्हातत्तस्स जहा छायासु अयं तह अपं भोगसुहं । धातोऽस्थितवेगस्य ग्रीष्मे उष्माभिवनस्य यथा मार्गस्थैकतरुच्छायासुखमय भोगसुखं तथा ॥ एवं दुःखे मूढात्मनां सुखाभिमानं समर्थ्य सांप्रतं परानुरोधेन भवतु नाम भोगसुखं तथा तदत्यल्पमित्यभ्युपगम सिद्धांतेन दर्शयति- मूलारा - अदिवेगस्स अधिनिजवस्य का अथवा उण्हातत्ततस्स मध्याहार्करमितप्तस्य । छायासुद्द मार्गस्थैकतरच्छायाप्राप्त्या शर्म ॥ उक्तं च- मध्यंदिनस्य यावच्छायाव्यतिक्रमे || वेगतो घावतः सौख्यं ताबद्धोगनिषेषणे || भोग पदार्थ सुख है ऐसा यद्यपि मान लिया तथापि यह सुख अत्यल्प है ऐसा दिखाते हैं--- अर्थ - ग्रीष्मकाल में सूर्यकी धूपसे जिसको कष्ट होरहा है और जो भागता जारहा है ऐसे पथिकको रास्तेमें वृक्षकी छायासे अल्प सुख मिलता है वैसे इस जीवको प्राप्त हुए भोगपदार्थोंसे अल्पसा सुख मिलता है । आवास ६ १२४
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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