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लाराधना
आश्वासः
तकलीफन होगी इस प्रकारसे गमन करना चाहिये. विरुद्ध उत्पत्ति स्थानों में प्रवेश करते समय वहांक सजीवों को अपने शरीरसे बाधा न हो इसलिये बार बार प्रतिलखनसे अर्थात् पिछिकासे शरीर स्वच्छ करना चाहिये. मार्गमें चलते समय अपने शरीरको इतरोंका धक्का न लगे इस तरहसे चलना चाहिये. दुष्ट गौ, बैल, कुत्ता, इत्यादि पाणिओंका परिहार करके गमन करना चाहिये. धान्यका भूमा, शालीधान्यक छिलके कज्जल, भस्म, गीला गोबर, तणका ढेर, पानी, पत्थर, फलक इनका परिहार करके गमन करना चाहिये. चोर, कलह इत्यादिकसे दूर रहकर गमन करना योग्य है. जाते समय अपने पावोंसे कोई चीजका अथवा प्राणीका आपसमें प्रवेश न हो इस प्रकारसे गमन करना यह मुनि गतिमिति है.
. मावासमितिनिरूपणार्थोसरमाथा
सच्चं असचमोसं अलियादीदोसबजमणवजं ॥ बदमाणसंणुवीची भासासमिदी हवदि सूद्धा ॥ ११९२ ॥ व्यालीकादिविनिर्मुक्तं सत्यासत्यमृषादूपम् ॥
वदतः सूत्रमार्गेण भाषासमितिरिष्यते ।। १२३२ ।। विजयोदया-चतुर्विधा पाक्-सत्या, मृषा, सत्यसाहिता मृषा, असत्यमृषा नेति । सतां हिता सत्या । न स. स्थानच मृषा या सा असच्चमोसर । द्विप्रकार वाचमित्थंभूतां । अलिगादिदोसवज्ज व्यलीकता अमावा, पारुष्य, पैशुन्यमित्यादिदोषरहितं । भणपज्जे पापासषो न भवति इत्यनयचं । यदमाणस व्याहरतः। अणुवीबी सूत्रानुसारेण भासासमिदी सुद्धा हयदि भायसमितिः घुसा भवति ।
भाषासमिति व्याकरोतिमूलारा-सर्च सत्यं । जनपदादिभदादशविध । व्रतसत्यादर्भमत्याच कोऽस्य भेद इति चेत् ब्रूमः । श्लोकः
अगत्यविरतौ सत्यं सत्स्वमत्स्यपि यन्मतम् ।।
वाक्तमित्यां भितं तट्रि धर्म सत्स्येव बलपि ॥ १ ॥ असच्चमोस असल्यमृषा । न सत्य नाप्यसत्यमित्यर्थः । अलिगादीदोसवजं । असत्यता, असत्यासत्यता, पारुण्य, पैशुन्यमित्यादिदोषरहितं । अणवज हिंसादिपापानबरहित । अणुवीचि सूत्रानुसारेण ।।
TAGRAMBHARA
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