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________________ SRTANTara 'पुकाराधना आश्राम । मूलारा--अणागर्द भविष्यतीत्थंभूतं मम वांछित वस्त्विति, भाविन्यपि वस्तुनि स्वस्वामिसंबंधानुरागेणाशुभपरिणामेन पारवंधो भवतीति भाषिनो प्रथानिवारय त्वमिति क्षपकं नियुक्त । दीदे अतीतान तत्तादम्बस्तु ममासीदित्यवीतषसुन्यपि स्वस्वामिसंबंधानुस्मरणानुरागादिरप्यशुभपरिणामः पापबंधाय प्रभवतीत्यतीतपरिग्रह निवारणनियोगः । कारावणुण्णादि काराव कारापः कारापण, अणुण्णा अनुज्ञा, अनुभतिः॥ परिग्रहत्याग करनेसे सुख मिलता है और परिग्रह ग्रहण करनेसे इस भवमें और परभवमें दोष उत्पन्न होते हैं अर्थ-इसलिये हे क्षषक भविष्यकालीन, वर्तमानकाल संबंधी और भूतकाल संबंधी संपूर्ण परिग्रहोंका तूं त्याग कर. तशा कृत, कारित और अनुमोदनासे इनका तूं त्याग कर. शंका-जो परिग्रह बीत चुका और जो आगे प्राप्त होनेवाला है यह वैधका कारण कैसे हो सकता है। इस वास्त उसका निावाण करने की क्या आवश्यकता है? उत्तर-जो परिग्रह नष्ट हो चुकनेसे उसमें से स्वस्वामिसंबंध नष्ट हुआ है तोभी यह परिग्रह वस्तु मेरी थी ऐसा स्मरण होकर उसमें ममत्व होता है, जिससे अशुभ परिणाम उत्पन्न होकर बंध होता है. इसी प्रकार भविष्यत्कालीन परिग्रहमेंभी ममत्व होता है. भविष्यकालमें मेरेको अमुक चीज मिलेगी ऐसे संकल्प मनमें उत्पन होकर शुभाशुभ परिणामोंसे कर्मबंध होता है. इसलिए त्रिकालसंबंधी संपूर्ण परिग्रहका तूं त्याग कर ऐसा क्षपकको आचार्य उपदेश करते हैं. जावंति केइ संगा विराधया तिविहकालसंभूदा ।।। तेहिं तिविहेण विरदो विमुत्तसंगो जह सरीरं ॥ ११८० ॥ यावन्तः केचन ग्रंथाः संभवन्ति विराधकाः ।। निवृत्तः सर्वथा तेभ्यः शरीरं मुंच निःस्पृहः ॥ १२१८ ॥ विजयोदया-जावंति केइ संगा यावन्तः केचन परिग्रहाः । पिराधमा विनाशकाः । कस्य ? रत्नत्रयस्य । ११६६
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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