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आश्वास
मूलाराधना
महिलावाविमुक्का बिलासपुंक्खा कडवखदिहिसरा ॥ जण्ण विधतीह सदा विसयवणे सो हबइ धण्णो ॥ १११३ ॥ धन्यं स्त्रीच्यावनिर्मुक्ताः कटाक्षेक्षणसायकाः॥
विध्यंति विषयारण्ये वर्तमान न योगिमम् ॥ ११५० ॥ विजयोदया-महिलायाइषिमुक्का युवतिव्याधषिमुक्काः। बिलासपृषत्कार, कटाक्षरटिशराः । यं न प्रति सदा विषयच ने चरतं मयति स धन्यः ॥
कामिनीकटाक्षनिरीक्षणाक्षोभ्यमाणमनस्कमभिटौतिमूला-वाह व्याधः । ण विधंति न विध्यति ।
अर्थ-स्त्रीरूपी पारर्धाक द्वारा छोड गए कटाक्षरूपी बाण विषयवनमें भ्रमण करनेवाले जिस महान्माका घाती है: जगत में पक्षक पात्र हैं.
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विध्योगतिवखदेतो विलासखंधो कडकदिष्टिणहो । परिहरदि जोव्वणवणो जमिस्थिवग्यो तगो घण्णो || १११४ ।। म बियोकरदोऽभ्यति विलासनग्रो मुनिम् ॥
कटाक्षानोऽगनाम्यानम्नाकायारण्यवर्तिनम् ॥ १५५१ ॥ विजयोन्या--विवोगगतिकस्यानो चिलासबथो विभ्रमनीयमदतो विलासस्कंधः फटाक्ष पिनत्रः परिहानि योयनवने में गुमतिय्याघ्रः सधभ्यः ।
योपानभिगम्यम भिनंदतिमूलाग-वियोग भूयुगांतविकारः । विलाम नेत्र विकारः । कटकबदिट्टी अपांगनिरीक्षणं । तगो सः ।
अर्थ-जो हावभावरूपी तीक्ष्ण दाढाओंसे युक्त है. विलासरूपी बाह जिसके हैं, कटाक्षरूप नखों को धारण करनेवाला यह तरुणीरूपी व्याघ्र तारुण्यचनमें विचरनवाले जिन माहात्माओंको पकडता नहीं वे महात्मा
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