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________________ मृलाराधना भूरिशृंगारकल्लोला यौवनाम्बुर्वधूनदी। म विलासास्पदा हासफेना वहति संयतम् ॥ ११४८ ॥ विजयोदया-सिंगारतरंगाप, अंगारतरंगया, विलासधेपया, यौवनजलया, बिहसितफेनया, नारीनया मुनि - মাস্বাম हाते ॥ मुनेः स्त्रीसरिडलेयत्वमाहमूलारा--सिंगार सागसंस्कारः। ण बुझंति नोयन्ते । . . अर्थ- स्त्री नदीक तुल्य है. नदीमें तरंग, बेग, पानी, फेस. इतनी बातें रहती हैं. इस स्त्रीरूपी नदीमें श्रृंगाररूपी तरंग हमेशा उछलते रहते हैं. विलासरूपी वेगसे यह बहती है. तारुण्यरूपी जलसे भरी हुई है और मंदहास्यरूपी फनसे यह व्याप्त हो रही है. एसी स्त्रीरूपी नदी जितेन्द्रिय मुनिओंको नहीं बहा सकती है. ते अदिसूरा जे ते विलाससलिलमदिचवलरदिवेग ।। जोवणणईसु तिण्णा ण य गहिया इच्छिगाहेहिं ॥ १११२ ॥ विलाससलिलोत्तीर्णा येस्तीवा यौचनापगा। अग्रस्ताः प्रमदाग्राहस्ते धन्या मुनिपुंगवाः॥ ११४२ ।। विजयोदया-ले अदिसूा ते अतिशूगः 1 ये विलासससिला मतिमपलरतिवेगा, यौवननदीमुत्तीर्णाः, न व गृहीता युवतिग्राहैः ।। गोविन्याइयाधाविरहेण तारुण्यतरंगिणीमतिक्रान्तान्मशंसति - मूलारा-पष्टम--- अर्थ - यह यौवनरूप नदी विलासरूपी पानीसे और अतिशय चंचल रतिरूपवेगमे युक्त है. इस नदीमें तरुण स्त्रीरूपी मगर रहते हैं. परंतु जिन निराजोंको स्त्रीरूप मगरने नहीं पकड़ा है वे मुनिराज इस जगतमें धन्य हैं. ऐसे मुनिराज ही अतिशूर समझने चाहिए.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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