________________
मूलाराधना
आश्वासः
स्त्रीवैराग्यभावनापरस्य माहाल्यमाहमूलारा-उसिदो वि वर्तमानोऽपि ।
अर्थ-जलमें उत्पन्न होकर वहां ही वृद्धिंगन हुआ एमा कमल जैसे पानीस अलिस ही रहता है. वैसे साधु विषयमें रहकर भी-उन विपयोंमे रहकर भी उन विषयोस अलिप्त रहते है. तात्पर्य यह है कि, वे पंच प्रकारके वैराग्य कारणोंका बारचार विचार करफ अपने हृदयक सिंहासन पर चैराग्यको दृह बिठाते हैं. जिससे चे विषयोंसे अलिप्त रह सकते हैं.
उग्गाहितस्सदा) अन्छेरमणोलणं जह जलेण ॥ तह विसयजलमणोछणभन्छेर विसयजलहिम्भि ॥ ११०९ ।। विषविष्टपस्थस्य चित्तमस्पर्शन यतेः ।।
सागरं गाहमानस्य सलिलैरिय जायते ॥ ११४६ ।। विजयोदया-ओग्गा तिम्सुधि अवगाहमानस्योदधि आध, पथा जलेनास्पर्शनं । तथा विषयजलेनाई. चित्तता आशय विषयजलधिमध्यमध्यासीनस्य ।
विषयपरिकग्निस्य विषयरनभिग्नंगे विस्मन भात्रयति--
मूलारा- उम्पादितम्प पूवमानस्य | अच्छे आश्च अग्गोलग अनार्दीकरण । अस्पर्शनम् । विसयजलधिम्मि विग्योदधिमध्यमध्यासीनस्य स्त्रीथराज्यभावनापरस्य साधाविषयजलानार्दीकरण माचर्यमित्यर्थः ।
अर्थ-जैसे कोई पुरुष समुद्र में अबगाहन करके भी यदि जलस्पर्शसे अलिप्त रहेगा तो वह आश्चर्यकारक बात समझनी चाहिये. वैसे विषयसमुद्र के बीच में अवगाहन करके भी विषयजलसे चित्त अलिप्त रहना आश्चर्यकारक है.
मायागहणे बहुदोससावए अलियदुमगणे भीमे ।। असुइतपिल्ले साहू ण विष्षणसंति इत्थिवणे ॥ १११०॥