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________________ मलाराधना अर्थ-इस प्रकार जो स्त्रीका गंध, शब्द, रूप, रस, स्पर्श, इनमें अपने मनको लगाता नहीं वही ब्रह्मचर्य का पालन निरविचार करता है. आश्वासः इहपरलोए जदि दे मेहुणविस्सुत्तिया हवे अण्ह ।। तो होहि तमुववुत्तो पंचविधे इस्थिवेरग्गे ॥ ११०७ ॥ यदि ते जायते धुद्धिलॊकद्वितयमैधुने ।। उद्योगः पंचधा कायः स्त्रीवैराग्ये तदा त्वया ॥ ११४४ ।। विजयोदया–हपरटोए रहपरलोके च गरि पैदानिशा र भामेत् : पंचति स्त्रीवैराग्य स्वमुपयुक्तो भव । तदुपयोगाविनश्यत्यसाघशुभपरिणाम इति सूरेरुपदेशः ॥ एवं वैराग्योपायपंचकं प्रपंच्य तदुपयोगविषय निर्दिशन्क्षपक तत्र प्रयुंक्त मूलारा-मेहुणविस्मोतिया मेधुनाशुभतमपरिणामः । हये जण्हु भवेत् । इहलोकविषयपरलोकविषय वा मैथुनं सेवितुमाकांक्षा यदि तव स्यादिति संबंधः । तं त्वम् ।। अब-इहलोकमें और परलोकमें यदि मैथुन करनेका परिणाम हृदय में उत्पन्न होगा तो पांच प्रकारके स्त्रीवैराग्य में हे क्षपक तूं हमेशा उद्युक्त हो जिससे तेरा मैथुन परिणाम जो कि अशुम है नष्ट होगा. ऐसा आचार्य का क्षपकको उपदेश है. उदयम्मि जायवडिय उदएण ण लिप्पदे जहा पउमं ॥ तह विसरहिं ण लिप्पदि साहू विसएसु उसिओ वि ॥ ११०८ ॥ लिप्यते वर्तमानोऽपि विषयेषु न नैतिः ॥ पद्मजातं जले वृद्ध जातुं किं लिप्यत जलैः ।। ११४॥ विजयोदया-उदयम्मि जायचद्विय उदके जातं परिवृतं च यथा पड़ा उदकन न लिप्यत । तथा न लिप्यते विश्वैः साधुर्विषयेषु वर्तमानोऽपि ॥ २१
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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