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मूलाराधना
अर्थ-जो पुरुष स्त्रीका संसर्ग विषके समान समझकर उसका नित्य त्याग करता है वहीं महात्मा यात्रज्जीव ब्रह्मचर्यमें रह रह सकता है.
आप
मम्मि इथिवग्गम्मि अपमत्तो सदा अन्बीभत्थो । बर्म निच्छरदि बदं चरित्तमूट चरणमा ! ११०३ !! अविश्वस्तोऽप्रमत्तो यः स्त्रीवर्गे सकले सदा ॥
यावज्जीवमसौ पानि ब्रह्मचर्यमरितम् ।। ११३८ ।। विजयोदया सबम्मि सर्वस्त्रीवर्गे । अप्रमत्तः सदा अविश्वस्तः, ब्रह्मवतमुदहति चारित्रस्य मूलं सारं च ॥
मूलारा-पष्टम । - अर्थ-संपूर्ण स्वीयर्मम जो पुरुष-मुनि सावध रहता है. अविश्वस्त रहता है वही ब्रह्मचर्य का पालन करता है. यह ब्रह्मचर्य चारित्रका मूल और सार है.
कि मे जंपदि किं मे पस्सदि अण्णो कह च वटामि। इदि जो सदाणुपेक्खइ सो दढबंभवदी होदि ॥ ११.४ ।।
अहं वर्ते कथं किं मे जनः पश्यति भाषते ॥
चिंता यस्येशी नित्यं दुब्रह्मवतोऽस्ति सः॥ ११३९ ।। विजयोदया-कि मे जापदि कि जल्पति मांजनोऽन्यः । किं पश्यति, कीटशी या मम वृत्तिरिति यः सदानुप्रेक्षत असौ रदवह्मचर्यचनो भवनि ॥
ब्रह्मवतदायर्योपायमाह - मलाग-- अणुपेखदि अनुनिनयनि ।
अर्थ-लोक मेरे विषय में क्या बोलत है, लोक मेरे तरफ किम निगाहस देखते हैं. और मेरी प्रवृत्ति कमी है ऐसा जो प्रतिदिन बारधार विचार करता है वही दृढ नचारी बन सकता है.