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________________ मूलाराधना आश्वा: मूलारा-सगडो शकटो नान मुनिः ।। जइणियाए जैनिकानाम्न्या ब्राह्मण्याः॥ अर्थ-शकट नामके मुनि जैनिका नामक वेश्याके संसर्गसे चारित्रसे च्युत होगये, तथा कुपार नामक मुनिभी वेश्याके सहवासमै चारित्रनष्ट हो गये हैं, TAMOND - - रुट्ठो परासरो सच्चईयरायरिसि देवपुत्तो य॥ महिलारूवालोई णहा संतत्तदिठ्ठीए ।॥ ११०१॥ रुद्रः पाराशरो नमो महिलारक्तया शा॥ देवर्षिः सात्यकिदेवपुत्रश्च क्षणमात्रतः।। ११३६॥ विजयोदया-गद्दो परासरी रुद्रा, पराशरः, सात्यकिः, राजर्षिर्देषपुत्रश्च युवतिरूपावलोकितसंसक्तया दृपया नष्टाः॥ मूलारा-सचई सात्यकिन म । रायरिसी राजर्षिनामा, । महिलारुवालाई स्त्रीरूपालोकिनः । संसत्तविट्ठीए सम्मुखमासक्तया दृशा। अर्थ---रुद्र, पराशरमुनि, सात्यकीमुनि, राजर्षि नामक मुनि और देवपुत्र नामक मुनि खिओंका रूप देखनमें आसक्त हुई दृष्टीसे नष्ट भ्रष्ट हो गये. जो महिलासंसग्गी विसंव दङ्ण परिहरइ णिच्चं ॥ णिस्थरइ बंभचेर जावजीवं अकंपो सो ॥ ११०२॥ भुजंगीनामिव स्त्रीणां सवा संगं जहाति यः॥ तस्य यत्रतं पूर्व स्थिरीभवति योगिनः ॥ ११३७ ॥ विजयोदया-जो महिलायाः स्त्रीणां संसर्ग षिमिय इष्ट्या नित्यं परिहरति । असौ ब्रह्मचर्य उद्दति यायजीव निश्चल श्रीगोष्टीपरिहारगुणमाहमूलारा-अकंपो निश्चलः । १११
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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