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मूलाराधना
आश्वास
मन्मनैः कोमलैाक्यैहप्रैर्विसंभभाषणैः ।।
गतिस्थितियतिक्रीडानमविञ्चोकमोहनः॥१.२४ ॥ विजयोदया-हासोपहासकीडा हासेन प्रतिहासेन च, क्रीडया, पकांते विश्वस्तजल्पितेन च लजमर्यादयोः सीमातिकम करोति नरः॥
-- हासो । उहा रजसपिदेहि एकांतविश्रासेन संजस्पैः । लज्जामज्जा दाण लज्जामर्यादयोः । मर्यादात्र स्थितिरित्थभावनियम इति यायन् । मेरं सीमा ।
__ अर्थ--स्त्रीके हास्यपर स्वयं हंसना उसके साथ खेलना, एकान्तमें विश्वासयुक्त होकर बोलना, लज्जाका त्याग करना और स्त्रियोंके साथ पुरुषोंका जो सभ्य व्यवहार होता है जिसको मर्यादा कहते हैं उसको तोडना ऐसे कार्योंसे पुरुष सीमातिक्रम करते हैं.
ठाणगदिपेच्छिदुल्लावादी सव्यसिमेव इच्छीण ॥ सबिलाला चेव सदा पुरिसस्स मणोहरा हुँति ।। १०९१ ॥ वकावलोकनैः स्त्रीणां वैराग्यं न्हियते नृणाम् ।।
शरीरस्पर्शिभिः क्रुद्धः पनगरिव जीवितम् ।। ११२५॥ विजयोदया-ठाणगदि स्थान, गतिः, प्रेक्षितमुल्लापमपीत्यादयः सर्वासामेव स्त्रीणां सबिलासाः पुरुषस्य मनः सदापहरन्ति ।
मूलारा-होत्ति सर्वासां स्त्रीणां स्थानादयः सविलासा भवन्त्येष ॥
अर्थ-स्त्रियोंका खडा होना, सलील गमन, कटाक्ष फेककर देखना, मधुर भाषण करना इत्यादि सभी बातें बिलासयुक्त-हावभावयुक्त होनेसे पुरुषोंका मन हरण करनेवाली होती हैं.
संसग्गीए पुरिसरस अप्पसारस्स लद्धपसरस्स । अग्गिसमीचे लक्खेव मणो लहुमेव वियलाइ ।। १०९२ ॥