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मूलाराधना
आश्वा
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विजयोदया--उल्लावसमुह्मायहि संभाषणतिवचनैः, होकनेन, मक्षपोन, तथा वनिताभिः स्वच्छाचारी तस्य शीघ्रं मनचलति ॥ .
मूलारा.....जल्लावसमुहावे हि संभाषणंप्रतिवचनेः । अल्लियपंछणे हि आश्रयणेन भणितकरणेन च सहरचारिस स्वेच्छाचारिणः॥
अर्थ--सियोंके साथ संभाषण और प्रत्युत्तरसे, उनके पास आना जाना करनेसे, उनको देखनेसे. स्वेच्छाचारी बने हुए पुरुषका मन चंचल बनता हैं.
ठिदिगदिविलासविन्भमसहासचेठिदकडक्खदिट्ठीहि ।। लीलाजुदिरदिसम्मेलणोक्यारेहिं इत्थीणं ॥ १०८९ ॥ हासोपहासलीलामिगुप्तगात्रप्रकाशनैः ॥
विलासर्विभ्रमैाँच वैः सह गमागमैः॥ ११२३॥ विजयोदया-ठिदिदि-स्त्रीणां स्थिस्या, गत्या विभ्रमेण, नर्तनाभिप्रायेण, निगृहनेन, कटाक्षावलोकन शोभया , शुत्या, क्रीडया, सहगमनानाबिना उपचारेण च ॥
मटारा-ठिदि स्थानक । गदि चलनं । विलास नयनविकारः । विभम युगांतविकारः । लासः ममणनस्य चेद्रिद अंगप्रकटनं । लीला शोभा मधुरांगविचेष्टितैः प्रियानुकरण वा । सुतिस्तेजः । सम्मेलण एकवावस्थान । ज्यवारेहि महगमनाशनायुपचारैः ।।
अर्थ... खियोंका खड़ा होना, उनका गमन करना, अवलोकन करना, मोह वक्र करना, मधुर नृत्य. म्सनादिकांको दिखाना, अभिमाय छिपाना, कटाक्ष फेकना, सुंदर रीनीसे अंगोंको हिलाना, प्रिय करके दानसार प्रवृत्ति रखना, शोभा, कांति, क्रीडा, साथ गमन करना, साथ बैठना, इत्यादिक उपचारोंसे पुरुषका मन चंचल होता है.
हासोबहासकीडारहस्सवीसत्थजपिएहि तहा ।। लज्जामजादीणं मेरं पुरिसो अविक्रमदि ॥ १०९०॥
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