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________________ मूलाराधना आचा १२.७ Real अर्थ-मन चंचल होनेके अनंतर उसकी लज्जा नष्ट होती है. लज्जा नष्ट होनेपर उनके साथ उसका | परिचय शेत: है अर्थाद यह उनको स्पिर जयनात देखता है. उनके पास जाता है, उनके साथ इसी मजाक करता है.. तदनंतर उसका मय भी नष्ट होता है. मैं इस वीके साथ रहता हूं मेरी लोक निंदा करेंगे यह भय उसके मनसे दूर चला जाता है. तात्पर्य-लज्जावान् भी मनुष्य ऐसी अवस्था आको प्राप्त होकर स्त्रियोंमे विश्वस्त होता है. अर्थात् खी यह सुख का साधन है ऐसा वह समझता है. वीसत्वदाए पुरिसो वीसभं महिलियासु उवयादि ॥ वीसंभादो पणयो पणयादो रदि हवदि पच्छा ।। १०८७ ॥ विश्वासे सति विभो विश्रंभः प्रणये सति ।। रामामु परमा पुंसः प्रणय जायते रतिः ॥ ११२१ ॥ विजयोदया-धीसत्वदार विश्वरूतया मनसः विश्रंभमुपयाति युवतिषु । विशंभात्प्रणयः प्रणपाद निर्भवति ॥ मूलारा-वीसस्थाए, अमनसा विश्वास न । बीसमें आतत्वेन व्यवहार विश्वासेगात्र प्रवृत्तिनिवृत्ती विस्तंभशब्देनोच्यले । तथा चोक्तं विश्वस्तेन च चित्तस्य विश्राम स्त्री गच्रति ।। विरंभात्प्रणयोऽस्त्येव प्रणयाच्च गतिस्ततः । अर्थ-मुखमाधनकी कल्पनासे वह नियाम विश्वास करता है. इस विश्वासरी मेमकी उत्पत्ति होती है. । अर्थात् यह स्त्री हमारी आप्त है एसा अभिप्राय उसमें उत्पन्न होता है. जिसमें प्रेमका उदय होता है. इसके अनंतर दोनोंमें आसक्ति पैदा होती है. उल्लावसमुल्लावहिं चा वि अल्लियणपेच्छणेहिं तहा । महिलासु सइरचारिस्स मणो अचिरेण खुब्भदि हु॥ १०८८॥ नारीणां दर्शनोद्देशभाषणप्रतिभाषपौः ॥ आकृष्यते मनो नृणामयस्कांतरिवायसम् ॥ ११२२ ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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