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महारापना
आश्वास
खोभेदि पत्थरो जह दहे पडतो पसण्णमवि पं ।। खोमेइ तहा मोहं पसण्णमवि तरुणसंसग्गी ॥ १०७२॥
शांतोऽपि क्षोभ्यते मोहो युवसंगेन देहिनः ॥
कर्दमः पनता क्षिप्रं मस्तरणव वारिणः ।। ११.५ ॥ बिजयोदया-खोमेदिक्षोभवति । पत्थरी शिला महती। यथा । दहे बहये पडती पतन् । पसण्णमयि के प्रतिमपि पंक ! नोभेदि चालनि । तथा मोह । पसरचि प्रशानमपि । वरुणसंसग्गी तरुणगोर ॥
तरुणगोष्ठीमयवदनिमूलाग..-याभिदि एनि....भिर मीरा ।
पाइन । म का अर्थ --जैसा बड़ा पत्थर सरोवरम पडनसे उसका निर्मल पानी उछलकर मलिन बनता है या वरूप संसग मनक विचारों में मालनता उत्पन्न करके उनको गंदें बनाता है. यदि कोई मनुष्य शांतिपरिणामका धारक है. तो भी उसको तरुणसंसर्ग त्यागना ही योग्य है अन्यथा उसके शांत विचारभी तरुण संसर्गसं विघडेंग.
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कलुसीकदपि उदयं अच्छं जह होइ कदयजोएण ।। कलुसो वि तहा मोहो उवसमदि हु वुढ़सेवाए ॥ १.७३ ।। उदीर्णोऽयंगिनो मोहो वृद्धसंगेन निश्चिलम् ॥
पंकः कलकयोगन सलिलस्येव शाम्यति ।। १५०६॥ विजयोत्रया-कलुसीकर्दपि उदगं कलुपीकतमप्युधकं । कद्गजोएण कतकफलसंबंधेन । अमछं खच्छे । अध होदि यथा भवति । कलुसोऽपि कलुषितोऽपि । मोदो मोहः । उपसमदि उपशाम्यति । इसेयाप पृयसेयया ॥
वृद्धसेवायाः कामौत्कट्यविलुटकत्वं वक्तिमुलारा-कलुसीकनपि इति कदकजोपण कसकफलसंबंधेन । कलसो उत्कटः ।।
अर्थ-जैसा मलिन पानी भी कतकफलके संयोगसे स्वच्छ होता है वैसा कलुप मोह भी शीलवृद्धोंके संसर्गसे शांत होता है,
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