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________________ मुलाधिन आश्वास पव । सीलेहि तरुणेहि तरुणैः शीलैः । एनेन शीलवृद्धा इह वृद्धशन गृहीताः । पते सेवा वृद्धसंवेति कधितं भवति । नुदगुणानां संघानः स्वयमपि गुणोत्कर्षमुपंतीति मन्यते ॥ एवं कामदोषस्त्रीदोषाशुचित्वानि त्रीणि श्रीधैग यानिमित्तानि व्याख्याय सांप्रतं वृद्धसेवा पंचदशभिगाथाभिर्याचनाणो वृद्धम्वरूपनिरूपणार्थ गाथाद्वयमाह गूलारा-थेरा वनि-सीले हि श्रमादिभिः । बुहहिं वृद्धि गतेः । न पयसा वृद्धेन । तरुणेहि कामादिभिः प्रापेण तासायेन सह वृत्तित्त्वात्तेषां । यत्पठन्ति लोका: अवश्य यौवनस्थेन कीबेनापि हि जंतुना। विकारः खलु कर्तव्यो नाविकाराय यौवनम् ॥ सुप्रसिद्धी च वृद्धगुणदोषपुरुषसेवनागुणदोषोत्कयो । ...अब वृद्धसेवाका वर्णन विस्तारसे करते हैं केवल यय अधिक होनेसे मनुष्य शीलवृद्ध होता नहीं इसका वर्णन अर्थ-वृद्ध हो अथवा तरुण हो यदि उनका शील बढ़ गया हो अर्थात् क्षमा, मार्दव, आर्जव, शांच बगैरह आत्मधर्म बढ गये तो उनको शीलवृद्ध कहना चाहिये और जिनके ये धर्म नहीं बन पाये उनको चाहे वयसे वृद्ध भी हो तो भी तरुण ही कहना चाहिये. अभिप्राय यह है कि शीलघुद्धोंको ही यहां वृद्ध कहना चाहिये और उनकी सेवाकाही नाम युद्धसेवा है. जिनके क्षमादिक गुण वृद्धिंगत हुए हैं उनकी सेवा करनेसे अपने भी गुण चढ़ते हैं. - अपि नेट यत्यादीनामपि संसों गुणवान्यतन्तेऽपि नपसव मंदीभूतकामरतिदर्पक्रीडा इति वदति जह जह बयपरिणामो तह तह णस्सदि णरस्स बलरूवं ॥ मंदा य हबदि कामरदिदापकीडा य लोभी य ॥ १०७१ ॥ यथा यथा वयोहानिः पुरुषस्य तथा तथा ॥ मंदा: कामरतिक्रीडादर्परूपपलादयः॥११०४ ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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