________________
मूलाराधना
आश्वासः
__ अर्थ--जिसके स्तन पुष्ट थे और मुखचंद्र के साथ स्पर्धा करता था, जो पूर्वमें नेत्राको अतिशय आनंद दायिनी थी, वही स्त्री संकुचित शरीवाली अर्थात रसहीन, और जीर्ण झोपडीके समान चारो तरफस जीर्ण । होती है.
।
.. जा सबसुदरंगी सविलासा पढमजोबणे कंता ॥
- सा चेत्र भदा संती होंदि हु विरसा य बीभन्छा ॥ १०५६ ।। ...या योवने प्रिया कांता सर्वावयव सुंदरी ॥
"दुगंधा कुधिता सास्ति यीभत्सा विरसा मृता ।। १०८८ ।। विजयोदया-जा सम्बसंदरगी यस्याः सवाणि अंगानि सुखशाणि । सपिलासा बिलाससहिता । पढमजोचणा प्रथमपौवना । कता कता | सोचव मदा संती सव मृता सनी । होहि ह विरसा भवति विरसा । श्रीमच्छा जुगुप्सनीया ॥
खलारा-जा.सक्वेति--मदासती मता ससी । बीभच्छा जुगुप्सनीया ।
अर्थ--जिसके सर्व अवयव सुंदर, विलाससहित, और प्रथम तारुण्यस युक्त थे वही स्त्री मरनेपर विरस और ग्लानि करने योग्य होती हैं, 'अधीन शरीरकी सुंदरता दृढ़ता बगरे गुण अस्थिर हैं ऐसा इन दो गाथाओंसे आचार्यने दिखाया है।
शरीरसंपदो भ्रषता व्याख्याता गावाचयेन 1 बंपरपोः संयोगस्याधुवा व्याचरे
मरदि सयं वा पुव्वं सा वा पुदेवं मदिज्ज से कंता ।। जीवतस्स व सा जीवंती हरिज्ज बलिएहि ॥ १०५७ ॥ नियतं वल्लभा पूर्व स्वयं वा नियने पुरा ।।
जीवंती जीवतो बान्यहियते बलिभिबलात् ।। १०८९ ।। विजयोदया-मरदि सयं वा पुथ्वं नियते स्वयं का पूर्व पुमान् । सा बा पूर्व म्रियेत । से तस्य पुनः कान्ता । जीवनस्स जीवनो वा सा जीयन्ती व्हियते यलिगेहि वलिभिरपरैः । इत्थं संयोगस्य यहुधाऽनित्यता ॥
-
१८८८
-
-.
..
.
-
-..-.-
-