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पृष्ठाधनक
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यदि सोभे इसे शरीर स्वमात ए यदि शोभत इवं वीरं । मोरदेव महत् । होज तो णाम से सोभा संत कुटं देहस्य शोभा
एकचत्वं धन्य देहस्यासवाक्षणार्थ गाथाचतुष्टयमाचइति इमं मानुषं । गाम ||
मारा
अर्थ- सुगंध तेल लगाकर स्नान करना. उबटन लगाना, स्नान करना, लेप करना इत्यादिकां की अपेक्षा केविनाही मयूर देहके समान यह देह स्वभावतः सुंदर होता तो ही मनुष्यदेव सुंदर है ऐसा कह सकते परंतु बाह्य पदार्थकं बिना सुंदरता आती नहीं है.
जदि दा विहिंसदि परो आलडं पाडदमप्पणो खेलं ॥
कदा लिपिबेज बुभगे महिलामुहजायकुणिमजलं ॥ १०४९ ॥ आत्मनः पतितो खेलो यदि स्पष्टुं घृणायते ॥
ता रामासुखां भी हि पीयते कथितं कथम् ॥। १०८० ॥
विजयोदया--जदिदा विहिंसदि परो आलं पण खलं यदि तापझसे जुगुप्सते स्पष्टुमात्मनोऽपि कासं । कदापि बुधो कथमिदानीं पिवेदुधः महिलामुद्दजदिकुणिमजलं युवतिमुखसमुद्भवमशुचिजले ॥ -जदिदा इति दाणि इदानीं । पिवेज्ज पिवेत् । कुणिमजलं अशुभः । लालाभिव्यः ॥
मूलारा
अर्थ --- मनुष्य यदि अपने भी थूकको स्पर्श करनेमें ग्लानि उत्पन्न करता है अर्थात् अपना थूक कफ को हाथसे स्पर्श करना भी चाहता नहीं तो यह बुद्धिमान मनुष्य स्त्रीके मुहमें उत्पन्न हुआ अपवित्र जल कैसे पीता है. कुछ मालुम नहीं पडता ?
मझे व कोइ सारो सरीरगो पत्थि ॥ एरंडगी व देहो णिरसारो सबहिं वेव ॥ १०५० ॥ वीक्ष्यमाणे मनुष्याणां बहिरंतञ्च वीक्ष्यते || एरंड दंड देहो न सारोऽय कदाचन । १०८१ ॥
अवाड:
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