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________________ मूलाराधना লীঘাষ १०८३ अर्थ-पापाण शब्दसे रत्न यह अर्थ लेना चाहिये. धातुका अर्थ जल ऐसा होता है. अथवा सुवर्णादिकको धातु कहते हैं. अंजन, मृत्तिका स्वचा, मुख सुगंधित करने वाले पदार्थ, केशको मुगंधित करने वाले पदार्थ, अर्थात् रत्न, सुवर्णादि धातु, अंजन, मृत्तिका, बनस्पतिओंकी छाल, मुख और के.शोको सुगंधित करनेवाले पदार्थ, तांबूल, पुष्पमाला, इत्र, इन पदार्थोंसे अभिभूददुध्विगंध परिभुजदि मोहिएहिं परदेहं ।। परिभुजदि पइयम संजुत्तं जह कडगभंडण ॥ १०४७ ॥ प्रच्छाद्य निदितं गंधं भुज्यतेऽन्यकलेवरम् ॥ हिंग्वादिभिरित्र दन्यः शितं बिघृणात्मभिः ॥ १०७८ ॥ मिजयोत्या-अभिभूचि गंधो निरस्ताशुभगंधः । परदेह सेजुत्तं परस्य देहः संयुक्तः । मोद्दिदहि मूरैः । परि. भुज्यते । परिभुजदि यगं मांस यथा युक्तं संस्कृतं । कहुगभंडेण मरिचेहिग्वादिभिश्च || मुळारा--अभिभूयेति-अभिभूय निरस्य । दुठियगंध दुस्सहविरुद्धगंध । उपलक्षणाद्वीभत्सभावं च । रमणीयतामापादोत्यर्थः । अभिभूददुव्विगंधो इति षा पाठः । कहुगर्भगेहि मरिचहिंग्वादिभिः । अशुचित्वं ॥ ____ अर्थ इन पदार्थोसे जिसका दुर्गध दूर किया है ऐसा परकीय देह मोहित लोगों द्वारा भोगा जाता है. जैसा अपवित्र, दुगंध मांसको हिंग, जीरा, मिरच वगैरे पदार्थासे छोक देकर जैसे मांसलुब्ध लोक खाते है वैसे परकीय देहका कामी लोक उपभोग लेते हैं. अब्भंगादीहि विणा सभावदो चेव जदि सरीरमिमं ।। सोभेज्ज मोरदेहव्व होज्ज तो णाम से सोभा ॥ १०४८ ॥ मयूर देहबदेहो ययभार अभविष्यत्तदा शोभा तस्मिनीक्षणतोषिणी॥१०७५ ।। विजयोदया-अभंगादाहिं बिणा सुगंधतैलेन म्रक्षण, उद्धर्तन, मानमालेपनमित्यादिभिर्धिना । सभावदो चव ।
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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