________________
भूलाराधना
१०८०
स्पष्टार्थोत्तरगाथा-..:.
सेदो जादि सिलेसो व चिक्कणो सव्वरोमकूबेसु ॥ जायेति जूवलिक्खा छप्पार्दयाओ य सेदेण ॥ १०४२ ॥ चिक्कणो रोमकूपेषु स्वेदः सर्वेषु सर्वतः॥
युकाः षट्पविका लिना जायते सर्वदा हतः ॥ १०७० ॥ विजयोदया-सेदो जादि खदो जायते ।सिलेसो प चिकणो चमकारलमयश्चिमकणः । सबलोमाबेसु सर्चलोमकृपेषु जायंति जायते । जूका यूकाः । लिक्खा लिशाध । टुप्पार्दगाओ य चर्मयुकाश्च । सेवेण हेतुना खदेन हेतुमा गतायता प्रबंधेन शरीरावयवा व्याख्याताः॥
एवं देहस्वाय यवान्प्रबंधन व्याख्यायेदानी ननिगमच्याख्यानाय गाथाचतुश्यमाहमूल-खेलो इति-उदरस्थ मेहनयोनिगुदयोः ।
मूलारा--संदो इति । सेदो प्रम्वेदः । जादि प्रादुर्भवति । सिलेसो वा बनलेप इब । श्रेष्मेव था। छापदिआओ पट्मादिकाचर्मयूकाः ॥
अर्थ-नाकका मल, थूक, पित्त, कफ, वमन, जिव्हाका मल, दन्तमल और लाला ये मल मुखमें उत्पन्न । होते हैं, मूत्र, विष्ठा और वीर्य थे उदर में होतें हैं.
अर्थ -शरीरके संपूर्ण रोमरंध्रोंसे 'पम्हारके यहाँक सचिकण पदार्थ के समान स्वेद निकलता है. इस स्वंदसे यूका, लिक्षा तथा चर्मयका उत्पन्न होती हैं. यहांतक शरीरके अवयवोंका वर्णन किया है. जिगमणं । निर्गमनव्याख्यामायाचटे
विठ्ठापुण्णो भिष्णो व घडो कुणिम समंतदो गलइ ॥ पूदिंगालो किमिणोव वणो पूर्दि च बादि सदा ॥ १०४३ ॥ गार्मुचति वासि विग्रहो निम्विलैरपि ।। गूथपूर्णो घटो गूथं छिद्रितो विवरैरिव ॥ १.७१ ॥