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________________ मूलारामा मावास ms-....-ren Kamarurinamain ramm- गुऔरणगी। मीणां निश्चिीधीमलः ।। सारासारमष्टानां मानसं हियते कथम् ॥ १०७२ ॥ लज्जनीयतिबीभत्से मूढधी रमते कथम् ।। यानी किन प्रवद्रक्त निंये कृमिरिच वर्ण ।। १०७३ ।। अंगारस्यव कायस्य बहिरंतश्च श्यते ।। नैकाप्यवयवः शुद्ध सर्वथा मलिनात्मनः ॥ १.७५ ।। इति निर्गमः। विजयोदया-वायुमणो विधाभिः पूगी । भिगणी व यो भिन्नघट इन्न । कुणिम कुचित। समतदो समतान् । गलदि प्रगति । टंगालावणो गलन्यूनि निचिनक्रिमिवणवत् । पूदि च वादि सदा दुरभिवाति सदा । विरगमण सम्मतं ॥ एवं प्रलंगमलनाचित्रमाख्याय देहस्य सामस्त्येन दुगंधोदावित्वं चाह मूलारा-बिद्रापुणो इति-गलदि अवनि देहः । पूदिंगालो दुर्गधोद्गारी । किमिणो क्रिमिनिचितः । वादि मुंचति देहः । एतां गायों केचिबुत्तरत्र पठन्ति । निर्गम: अर्थ-विष्टासे पूर्ण घडा जैसा चारो तरफसे दुर्गधको स्रवता है, अथवा क्रिमिओंसे भरा हुआ ब्रपा . मुड़कर जैसा गलने लगता है वैसा इस देहसे भी हमेशा दुगंध मलमूत्रादिक पदार्थोंका स्राव होता रहता है. .. इंगालो धोवते ण सुज्झदि जह महापयत्तेण ॥ सव्वेहि समुद्देहिम्मि सुज्झवि देहो ण धुव्वतो ॥ १०४४ ।। सिण्हाणुभंगुब्बटणेहिं मुहृदंतअच्छिधुवणेहिं ।। णिश्चपि धोवमाणो बादि सदा पूदिय देहो ॥ १०४५ ॥ कायो जलैः पयोधीनां धान्यमानोऽग्विलैरपि ।। स्वभावमलिनो जातु मांगार इव शुध्यति ।। १५७५ ।। ww- " " १६
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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